Wednesday, March 11, 2020

नभ में उड़ने वाले खग को क्षणभर में ही गिरते देखा

नभ में उड़ने वाले खग को क्षणभर में ही गिरते देखा
धर्म-धुरंधरों को घमंड में नित लोगों को लड़ाते देखा
मानव की मानवता को यूं पशुता में भी बदलते देखा
दावानल मेंं घिरे जीवों को तड़प कर जलते मरते देखा
देख रहीं हैं मेरी आंखें तम में भटकते बचपन को,
कोख में मरती बेटी को और भूख में बिकते यौवन को
नेताओं के विष-भाषण देखे सड़ते ढेरों राशन देखे
फसलों की बर्बादी देखी कृषकों को फांसी लगाते देखा
इन आंखों ने
धरना देते छात्रों को देखा फिर उनको पिटते भी देखा
कोरोना का तांडव देखा बेकारी का आलम देखा
अर्थव्यवस्था को ढहते देखा फिर बैंकों को डूबते देखा
महंगाई की मार भी देखी हथियारों का व्यापार भी देखा
दे रहीं गवाही नीर की आँखें धारा ३७० हटने की,
नागरिकता कानून बना कर कश्मीर के आम भारत बन जाने की
सार्वजनिक उपक्रमों को बिकते देखा बड़े निजी उद्योगों को फलते देखा
कर्मियों की जबरन सेवा-समाप्ति देखी
सैन्यबलों का साहस देखा
इन आँखों ने.................

~ नीर

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