Saturday, March 14, 2020

खुद्दारी और आत्मसम्मान शायरी

पाँव कमर तक धँस जाते हैं धरती में
हाथ पसारे जब ख़ुद्दारी रहती है
- राहत इंदौरी

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है 
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है 
- फ़ानी बदायुनी

किसी को कैसे बताएँ ज़रूरतें अपनी 
मदद मिले न मिले आबरू तो जाती है 
- वसीम बरेलवी

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है 
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता 
- जावेद अख़्तर

मेरी ख़ुद्दारी सदा करती है मेरी रहबरी
मैं कभी पत्थर से अपने सर को टकराता नहीं
- इबरत बहराईची

बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हम ने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से
- राहत इंदौरी
मुफ़लिसी ने कर दिया है उस की ख़ुद्दारी का ख़ून
वो पहनता है किसी की मेहरबानी का लिबास
- रम्ज़ अज़ीमाबादी

बहुत मुश्किल है जो उस की ग़रीबी दूर हो जाए
अजब ख़ुद्दार है इमदाद को भी भीक समझे है
- ज़मीर अतरौलवी
ख़ैरात की जन्नत ठुकरा दे है शान यही ख़ुद्दारी की
जन्नत से निकाला था जिस को तू उस आदम का पोता है
- हफ़ीज़ जालंधरी

मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर 
आदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं 
- इक़बाल साजिद

यही तहज़ीब तो विर्से में मिली है मुझ को
तुम अना समझे हो जिस को मिरी ख़ुद्दारी है
- सीन शीन आलम
ख़ुद्दारी-ए-इश्क़ ने सिखाया मुझ को
दिल दे के किसी को बे-ज़बाँ हो जाना
- सूफ़ी तबस्सुम

अना ख़ूद्दार की रखती है उस का सर बुलंदी पर
किसी पोरस के आगे हर सिकंदर टूट जाता है
- मयंक अवस्थी

हर्फ़ आने न दिया इश्क़ की ख़ुद्दारी पर
काम नाकाम तमन्ना से लिया है मैं ने
- क़मर मुरादाबादी
तरस खाते हैं जब अपने सिसक उठती है ख़ुद्दारी
हर इक ख़ुद्दार इंसाँ को इनायत तोड़ देती है
- जावेद नसीमी

बे-लिबासी के सिवा अब कुछ नज़र आता नहीं
इस क़दर है जिस्म ख़ुद्दारी की चादर से अलग
- कलीम अख़्तर

रफ़्ता रफ़्ता मिरी ख़ुद्दारी से वाक़िफ़ होगे
अभी कुछ दिन मिरे अंदाज़-ए-मोहब्बत समझो
- सबा अकबराबादी
दिल पर तो बहुत ज़ख़्म ज़माने के लगे हैं
ख़ुद-दारी से लेकिन कभी रोया नहीं जाता
- अज़हर नैयर

अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
जिस जगह से उठ चुके हैं उस जगह फिर जाएँ क्या
- सालिक लखनवी

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