ज़िंदगी शायद इसी का नाम है...
ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है
बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे
फ़ुज़ैल जाफ़री
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियां मजबूरियां तन्हाइयां
कैफ़ भोपाली
बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे
फ़ुज़ैल जाफ़री
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियां मजबूरियां तन्हाइयां
कैफ़ भोपाली
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो...
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैं
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैंने
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
निदा फ़ाज़ली
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैंने
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
निदा फ़ाज़ली
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से...
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिसमें
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
साहिर लुधियानवी
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
साहिर लुधियानवी
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए...
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
फ़ानी बदायुनी
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
कलीम आजिज़
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
फ़ानी बदायुनी
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
कलीम आजिज़
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया...
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
गुलज़ार
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
साहिर लुधियानवी
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
गुलज़ार
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
साहिर लुधियानवी
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है...
जिसे परछाई समझे थे हक़ीक़त में न पैकर हो
परखना चाहिए था आप को उस शय को छू कर भी
अखिलेश तिवारी
जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है
आफ़ताब हुसैन
परखना चाहिए था आप को उस शय को छू कर भी
अखिलेश तिवारी
जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है
आफ़ताब हुसैन
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती...
ज़िंदगी जिस के तसव्वुर में बसर की हमने
हाए वो शख़्स हक़ीक़त में कहानी निकला
अक़ील शादाब
सदाक़त हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइज़
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
हाए वो शख़्स हक़ीक़त में कहानी निकला
अक़ील शादाब
सदाक़त हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइज़
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती...
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं
हस्तीमल हस्ती
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती
हस्तीमल हस्ती
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं
हस्तीमल हस्ती
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती
हस्तीमल हस्ती
कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे...
गुंजाइश-ए-अफ़्सोस निकल आती है हर रोज़
मसरूफ़ नहीं रहता हूँ फ़ुर्सत के बराबर
अबरार अहमद
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे
हस्तीमल हस्ती
मसरूफ़ नहीं रहता हूँ फ़ुर्सत के बराबर
अबरार अहमद
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
कुछ और सबक़ हमने किताबों में पढ़े थे
हस्तीमल हस्ती
मैंने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई...
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
मैंने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
आलम ख़ुर्शीद
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
मैंने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
आलम ख़ुर्शीद
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया...
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया
वसीम बरेलवी
हम जाग रहे थे सो अभी जाग रहे हैं
ऐ ज़ुल्मत-ए-शब तुझ को थपकना भी न आया
एज़ाज़ अफ़ज़ल
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया
वसीम बरेलवी
हम जाग रहे थे सो अभी जाग रहे हैं
ऐ ज़ुल्मत-ए-शब तुझ को थपकना भी न आया
एज़ाज़ अफ़ज़ल
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