Wednesday, March 18, 2020

इश्क़, खामोशी,आंखें और जुदाई शायरी

चले आओ जहां तक रौशनी मालूम होती है... 
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है 
चले आओ जहां तक रौशनी मालूम होती है 

नुशूर वाहिदी
कोई काम भी नहीं आता...
करूंगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम 
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता 
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
तरसे हैं पानी के लिए... 
टूट पड़ती थीं घटाएं जिन की आंखें देख कर 
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए 

सज्जाद बाक़र रिज़वी
जो उतरने वाले थे... 
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में 
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे 

जमाल एहसानी
इबादत में ख़लल पड़ता है...
उस की याद आई है सांसो ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है 
राहत इंदौरी
को निभाते हुए मर जाते हैं... 
हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस 
जो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं 

अब्बास ताबिश
कुछ कांपता रह गया...
आते आते मिरा नाम सा रह गया 
उसके होंठों पे कुछ कांपता रह गया 
वसीम बरेलवी
ख़ुदा भी नहीं...
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में 
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं 
अख़्तर सईद ख़ान
मिरे नाम से जल जाते हैं... 
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ 
जाने क्यूं लोग मिरे नाम से जल जाते हैं 
क़तील शिफ़ाई
 
सिर्फ़ उस के होंठ काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं 
ख़ुद बना लेती है होंठों पर हंसी अपनी जगह 
अनवर शऊर

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