Saturday, March 14, 2020

इश्क और हौसला शायरी

ज़फ़र इक़बाल
जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता 
मैं हमेशा तो मोहब्बत में नहीं रह सकता 

उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं 
रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए... 
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र' 
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए 

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला 
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला 
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें... 
घर नया बर्तन नए कपड़े नए 
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें 
जौन एलिया
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई 
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया 

इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ 
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने 
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं... 
उस गली ने ये सुन के सब्र किया 
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं 

क्या सितम है कि अब तिरी सूरत 
ग़ौर करने पे याद आती है 
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया... 
मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से 
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया 
दाग़ देहलवी...
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है 
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है 


इस नहीं का कोई इलाज नहीं 
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं 
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे... 
आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले 
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले 

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे 
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना 
ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में... 
ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से 
ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में 
मुनव्वर राना
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो 
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो 

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो 
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है 
 
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना... 
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है 
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना 

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई 
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई 
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते... 
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर 
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते 
 
मोमिन ख़ाँ मोमिन
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन' 
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे 

क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में 
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में 
तुम ने अच्छा किया निबाह न की... 
मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के 
तुम ने अच्छा किया निबाह न की 

किसी का हुआ आज कल था किसी का 
न है तू किसी का न होगा किसी का 
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब... 
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब 
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब 

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