Saturday, March 21, 2020

दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

ज़िंदगी जिस दयार में गुज़री
इक तेरे इख़्तियार में गुज़री
उम्र जो इश्क़ में गुज़रनी थी
वो तेरे इंतज़ार में गुज़री!


‏उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन 
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में 
~ सीमाब अकबराबादी

वजह तक पूछने का.... मौका ही ना मिला! 
बस लम्हे गुजरते गए.... हम अजनबी होते गए!


रोज़ कहता हूँ कि अब उन को न देखूँगा कभी 
रोज़ उस कूचे में इक काम निकल आता है

#सीमाब_अकबराबादी

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे 
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे 

है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू 
मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे 

देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा 
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे 

★★★
सीमाब अकबराबादी

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में 
इक आईना था टूट गया देख-भाल में 

आज़ुर्दा इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से 
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में 

दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है 
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में 

★★★
सीमाब अकबराबादी



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