Friday, March 13, 2020

गिले शिकवे शायरी

ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने 
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता 
- चराग़ हसन हसरत

कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से 
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है 
- ख़ुर्शीद तलब

कब वो सुनता है कहानी मेरी 
और फिर वो भी ज़बानी मेरी 
- मिर्ज़ा ग़ालिब

बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा 
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए 
- दाग़ देहलवी

चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है 
लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई 
- अख़्तर अंसारी अकबराबादी

शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है 
रिश्ता ही मिरी प्यास का पानी से नहीं है 
- शहरयार
ज़मीं पर आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
- राहत इंदौरी

सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी 
दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है 
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा 
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया 
- जोश मलीहाबादी

बे-रुख़ी पर जिसे महमूल किया करता हूँ
वो भी कुछ आप का अंदाज़-ए-मोहब्बत ही न हो
- मज़हर इमाम

मेरी ही जान के दुश्मन हैं नसीहत वाले 
मुझ को समझाते हैं उन को नहीं समझाते हैं 
- लाला माधव राम जौहर
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ 
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ 
- ख़लील-उर-रहमान आज़मी

मिरे इश्क़ को तिरी बे-रुख़ी ही नसीब है तो यही सही
तिरी बे-रुख़ी रहे शादमाँ मुझे बे-रुख़ी का गिला नहीं
- अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं 
मेरे ग़म-ख़ाने में कुछ ऐसा अँधेरा भी नहीं 
- इक़बाल अज़ीम
शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं 
फिर करोगे कभी इस मुँह से शिकायत मेरी 
- फ़ानी बदायुनी

उसी का दाख़िला इस दश्त में करो अब से
जो सब्र पी सके अपना ग़ुबार खा जाए
- वरुन आनन्द

कभी ग़ुरूर कभी बे-रुख़ी कभी नफ़रत
शबीह-ए-जोश-ए-मोहब्बत बदलती रहती है
- शकेब जलाली
खुल चुकी हैं उस के घर की खिड़कियाँ मेरे लिए
रुख़ मिरी जानिब रहेगा बे-रुख़ी जैसी भी है
- शहज़ाद अहमद

तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़ 
किस से किस का गिला करे कोई 
- हादी मछलीशहरी

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