कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
- चराग़ हसन हसरत
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है
- ख़ुर्शीद तलब
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
- मिर्ज़ा ग़ालिब
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए
- दाग़ देहलवी
चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है
लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई
- अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
रिश्ता ही मिरी प्यास का पानी से नहीं है
- शहरयार
ज़मीं पर आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे
- राहत इंदौरी
सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी
दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
- जोश मलीहाबादी
बे-रुख़ी पर जिसे महमूल किया करता हूँ
वो भी कुछ आप का अंदाज़-ए-मोहब्बत ही न हो
- मज़हर इमाम
मेरी ही जान के दुश्मन हैं नसीहत वाले
मुझ को समझाते हैं उन को नहीं समझाते हैं
- लाला माधव राम जौहर
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ
- ख़लील-उर-रहमान आज़मी
मिरे इश्क़ को तिरी बे-रुख़ी ही नसीब है तो यही सही
तिरी बे-रुख़ी रहे शादमाँ मुझे बे-रुख़ी का गिला नहीं
- अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं
मेरे ग़म-ख़ाने में कुछ ऐसा अँधेरा भी नहीं
- इक़बाल अज़ीम
शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
फिर करोगे कभी इस मुँह से शिकायत मेरी
- फ़ानी बदायुनी
उसी का दाख़िला इस दश्त में करो अब से
जो सब्र पी सके अपना ग़ुबार खा जाए
- वरुन आनन्द
कभी ग़ुरूर कभी बे-रुख़ी कभी नफ़रत
शबीह-ए-जोश-ए-मोहब्बत बदलती रहती है
- शकेब जलाली
खुल चुकी हैं उस के घर की खिड़कियाँ मेरे लिए
रुख़ मिरी जानिब रहेगा बे-रुख़ी जैसी भी है
- शहज़ाद अहमद
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
किस से किस का गिला करे कोई
- हादी मछलीशहरी
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