Thursday, March 19, 2020

अंधेरा, अंधकार, स्याह, अंधियारा, तीरगी शायरी

तीरगी की अपनी ज़िद है जुगनुओं की अपनी ज़िद 
ठोकरों की अपनी ज़िद है हौसलों की अपनी ज़िद 

कौन सा क़िस्सा सुनाऊँ आप को मुश्किल ये है 
आँसुओं की अपनी ज़िद है क़हक़हों की अपनी ज़िद 
प्रबुद्ध सौरभ

तीरगी - अँधेरा

गले लग जाओगे कसकर मिलोगे जब कभी हमसे,
हमें मालूम है ये बेरुखी दो चार दिन की है।

न करिये बंद उम्मीदों की खिड़की, रौशनी होगी
हमें मालूम है ये तीरगी दो चार दिन की है।

~ डॉ. विष्णु सक्सेना

ख़ुशनुमा सुबहा थी जो अब ग़म में डूबी शाम है
रौशनी की इब्तदा का तीरगी अंजाम है

ज़िंदगी की दौड़ ही है मौत की आगोश तक
हर खिलाड़ी के लिये बस एक ही इनाम है

~धर्मेन्द्र श्रीवास्तव

दिलों की तीरगी छोड़ हंस के बोला करो 
आपका ही दिल है दिए जलाया करो 

मुस्कुराहट है हुस्न का जेवर 
रूप बढता है मुस्कुराया करो 

हुकम करना भी सखावत है 
कोई खिदमत हो तो बताया करो 

इस दुनियाँ से दिलकशी न हटे 
सो नित नए पैरहन में आया करो


न खिज़ा में है कोई तीरगी, न बहार में है कोई रौशनी=ये नज़र नज़र के चराग़ हैं, कभी बुझ गए कभी जल गए 
तीरगी - अँधेरा (Darkness)

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ 
कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ 

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ 
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ 
— वसीम बरेलवी

मैं नज़र से पी रहा हूं ये समां बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए


क्यूँ ना हो बात "तीरगी" की महफ़िल में
शमाँ बुझने के बाद यहाँ और क्या रह जाएगा
 





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