इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
~ जिगर मुरादाबादी
हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है
~ जिगर मुरादाबादी
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
~फ़िराक़ गोरखपुरी
अदायें सीख लीं तुमनें, नज़र से क़त्ल करने की ..
मगर तालीम न सीखी, किसी से इश्क़ करने की.
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
✍️ जिगर मुरादाबादी
साहिब ए अकल हो तो एक मशविरा तो दो....
एहतियात से इश्क करुं या इश्क से एहतियात!
नज़र मिला के मेरे पास आ के लूट लिया
नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया
ज़िगर मुरादाबादी
सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं
हम मगर सादगी के मारे हैं
उस की रातों का इंतिक़ाम न पूछ
जिस ने हँस हँस के दिन गुज़ारे हैं
ऐ सहारों की ज़िंदगी वालो
कितने इंसान बे-सहारे हैं
आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है
जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं
★★★
जिगर मुरादाबादी
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
★★★
जिगर मुरादाबादी
तुम अच्छे तेराक़ हो तैर कर निकल जाओगे
मैं आशिक हूँ सिर्फ़ तुम्हारा,मुझे तुझ में ही डूब जाना है
इश्क कर बैठे मगर हमने ये सोचा ही नहीं
ख़ाक हो जाएंगे हम इश्क़ के अंजाम के बाद।
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
~ ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं!
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