Thursday, March 26, 2020

हौसला शायरी

मस्जिद हो मदरसा हो कि मज्लिस कि मय-कदा
महफ़ूज़ शर से कुछ है तो घर है चले-चलो
- वहीद अख़्तर

ज़िंदगी को हौसला देने के ख़ातिर
ख़्वाहिशों को रेज़ा रेज़ा चुन रहा हूँ
- महफूजुर्रहमान आदिल

ऐ अदम के मुसाफ़िरो हुश्यार
राह में ज़िंदगी खड़ी होगी
- साग़र सिद्दीक़ी

इस लिए होशियार रहता हूँ
क्या ख़बर कब वो बे-ख़बर हो जाए
- अहमद महफ़ूज़
 
इस दर्जा होशियार तो पहले कभी न थे
अब क्यूँ क़दम क़दम पे सँभलने लगे हैं हम
- वाली आसी

सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़' 
तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं
-अहमद महफ़ूज़
उसी ने बख़्शा है मुझ को शुऊ'र जीने का
जो मुश्किलों की घड़ी बार बार आई है
- महफूजुर्रहमान आदिल

वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
- महफूजुर्रहमान आदिल
ज़रा महफ़ूज़ रस्तों से गुज़रना
तुम्हारी शहर में शोहरत बहुत है
- अंजुम बाराबंकवी

अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या
ग़ैर के गुलशन से सौ दर्जा भला अपना क़फ़स
- हीरा लाल फ़लक देहलवी

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