Friday, March 27, 2020

ठहराव शायरी

अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिसलन ये किनारों प ये ठहराव नदी का
सब साफ़ इशारे हैं कि गहराई बहुत है
- अखिलेश तिवारी
सफ़र अपने ही भीतर कर रहा हूँ
मिरा ठहराव मुद्दत से रवाँ है
- बकुल देव

ठहराव पानियों में है कितना अजीब सा
दरिया के ख़ुश-ख़िराम सफ़ीनों की ख़ैर हो
- शबनम शकील
अजब ठहराव था जिस में मसाफ़त हो रही थी
रवाना भी नहीं था और हिजरत हो रही थी
- फ़ज़्ल गीलानी

हर-नफ़स को अपनी मंज़िल का पता मिलता नहीं
जो जहाँ ठहराव हैं इक कारवाँ बनता गया
- कलीम अहमदाबादी
मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए
अब मुझे ख़ुद से निकलने की इजाज़त दी जाए
- सालिम सलीम

गुज़रते वक़्त की कोई निशानी साथ रखता हूँ
कि मैं ठहराव में भी इक रवानी साथ रखता हूँ
- आफ़ताब हुसैन

जो किसी दर पे न ठहरे वो हवा लगती हो
ज़ुल्फ़ लहराए तो आँचल में छुपा लेती हो
- साहिर लुधियानवी

मैं भी रुकता हूँ मगर रेग-ए-रवाँ की सूरत
मेरा ठहराव रवानी की तरह होता है
- फ़ैसल अजमी

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