Tuesday, March 17, 2020

धरती शायरी

प्यासी धरती जलती है
सूख गए बहते दरिया
- नासिर काज़मी

तुम हो फ़लक कब समझोगे
धरती क्या कुछ सहती है
- बिल्क़ीस ख़ान

पूछा जो सवाल आसमाँ से
धरती से जवाब आ रहा है
- करामत अली करामत


कहाँ जलता रहा धरती का सीना
कहाँ होती रही बरसात लिखना
- कँवल ज़ियाई
हिस्सा-बख़रे बाँट लिए हैं लोगों ने
बेचारे क्या करते धरती एक ही थी
- मुनीर सैफ़ी


फट रही है ये फिर से धरती क्यूँ
फिर से यज़्दाँ का क़हर आया है
- उज़ैर रहमान

पानियों और हवा पे लिख न सके
हम ने धरती पे नाम लिक्खा है
- हैरत फ़र्रुख़ाबादी


ख़ारज़ारों पे चलूँ नंगे पाँव
ख़ुश्क धरती की दुआ लूँ पानी
- अता आबिदी

पहले जो थी मेहरबाँ हम सब की माँ
अब वही धरती है बिकती दाम पर
- नासिर शहज़ाद


अँधेरे नोच रहे थे जमाल धरती का
मिरी ज़मीन का सूरज कहीं गया हुआ था
- मुमताज़ गुर्मानी

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