*दिन ख्वाबों को बनाने में गुजार दी*...
*रात बच्चों को सुलाने में गुजार दी*...
*जिस घर के बाहर तख्ती भी अपने नाम की नहीं थी*...
*जिंदगी उस घर को सजाने में गुजार दी*...
न हारी थी, न हारेगी, न हारी है, वो नारी है
कई रिश्तों की जिसपर ज़िम्मेदारी है, वो नारी है
जो हँसकर दर्द सहती है, जो हँसकर ग़म उठती है
जहाँ की हर चुनौती जिससे हारी है, वो नारी है!
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