साँस लेना भी कैसी आदत है
जिए जाना भी क्या रिवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
जिए जाते हैं जिए जाते हैं...
पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं जिए जाते हैं
रात-भर हम ने अलाव तापा...
आदतें भी अजीब होती हैं
रात-भर सर्द हवा चलती रही
रात-भर हम ने अलाव तापा
मैंने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं
तुम ने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले...
तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े
मैंने जेबों से निकालीं सभी सूखी नज़्में
तुम ने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले
अपनी इन आँखों से मैंने कई माँजे तोड़े
काट के डाल दिया जलते अलाव में उसे...
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकीं
तुम ने पलकों पे नमी सूख गई थी सो गिरा दी
रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हम को
काट के डाल दिया जलते अलाव में उसे
रात-भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हम ने...
रात-भर फूँकों से हर लौ को जगाए रक्खा
और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रक्खा
रात-भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हम ने
फिर उभरता है, फिर से बहता है...
आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर
टूटता भी है डूबता भी है
फिर उभरता है, फिर से बहता है
आदमी बुलबुला है पानी का...
न समुंदर निगल सका इसको
न तवारीख़ तोड़ पाई है
वक़्त की हथेली पर बहता
आदमी बुलबुला है पानी का
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं...
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो
न किसी शाख़ का साया है, न दीवार की टेक
न किसी आँख की आहट, न किसी चेहरे का शोर
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं
अपनी तन्हाई लिए आप चलो, तन्हा अकेले...
चंद क़दमों के निशाँ हाँ कभी मिलते हैं कहीं
साथ चलते हैं जो कुछ दूर फ़क़त चंद क़दम
और फिर टूट के गिर जाते हैं ये कहते हुए
अपनी तन्हाई लिए आप चलो, तन्हा अकेले
साफ़ है रस्ता देखो...
साथ आए जो यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो
बहकी बहकी सी बातें करता था...
वो जो शाएर था, चुप सा रहता था
बहकी बहकी सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था
गीली गीली सी नूर की बूँदें...
गूँगी ख़ामोशियों की आवाज़ें!
जम्अ करता था चाँद के साए
गीली गीली सी नूर की बूँदें
ओक में भर के खड़खड़ाता था
वक़्त के इस घनेरे जंगल में...
रूखे रूखे से रात के पत्ते
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ, वही, वो अजीब सा शाएर
चाँद की ठोड़ी चूमा करता है...
रात को उठ के कुहनियों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता है!!
चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुद-कुशी की है
No comments:
Post a Comment