*कवि नीरज की खूबसूरत कृति,*
*होली पर--*
_करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना की होली है,_
_हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना की होली है।_
_इमारत इक पुरानी सी, रुके बरसों से पानी सी,_
_लगे बीवी वही नूतन, समझ लेना की होली है।_
_तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें,_
_उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना की होली है।_
_हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल,_
_अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना की होली है।_
_कभी खोलो हुलस कर, आप अपने घर का दरवाजा,_
_खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना की होली है।_
_बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की,_
_जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना की होली है।_
_अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो,_
_हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना की होली है।_
🔥🌈 *Happy Holi* 🌈🔥
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