Friday, March 27, 2020

यह घटा घिरती रही पर भूमि पर बरसी नहीं

धीरे-धीरे उतर क्षितिज से 
आ वसंत-रजनी
तारकमय नव वेणी बंधन,
शीश-फूल कर शशि का नूतन
रश्मि-वलय सित घन-अवगुण्ठन,
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे
चितवन से अपनी 
पुलकती आ वसंत-रजनी

बांधे मयूख की डोरिन से किशलय के हिंडोरन में नित झूलिहौ,
शीत मंद समीर तुम्हें दुलराइहै अंक लगाय कबूलिहौ

महका है गुलाब उसी से यहां, उसे पा के प्रसन्न बतास रही,
कुछ गंध छिपाए हैं पंकज भी कुछ चंपक के फूल के पास रही

यह घटा घिरती रही पर भूमि पर बरसी नहीं
इस विपिन में तप्त एक निदाघ ही छाया हुआ है
पीत हर पल्लव हुआ हर फूल मुरझाया हुआ है
ताप से उबली तरंगें ज्वार उफ़नाया हुआ है
सूर्य-मंडल क्या अतिथि बन भूमि पर आया हुआ है

-महादेवी वर्मा 

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