Friday, March 27, 2020

'ख़ुद से बात करते’ शायरी

क्या हो जाता है इन हंसते जीते जागते लोगों को
बैठे बैठे क्यूं ये ख़ुद से बातें करने लगते हैं
- अमजद इस्लाम अमजद


ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
मैं ख़ुद को साबित करूँगा दावा नहीं करूँगा
- तैमूर हसन


पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
- शीन काफ़ निज़ाम

बदन का बोझ उठाना भी अब मुहाल हुआ
जो ख़ुद से हार के बैठे तो फिर ये हाल हुआ
- उमर फ़ारूक़


मेरी तन्हाई की पगडंडी पर
मेरे हम-राह ख़ुदा रहता है
- प्रीतपाल सिंह बेताब

मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
- जां निसार अख़्तर


ख़ुद की ख़ुद से बातें कर के
हम दोनों उक्ता भी चुके हैं
- रेनू नय्यर

न की जाती है औरों से मुलाक़ात एक लम्हे को
न हो पाती है ख़ुद से बात जब से तुम नहीं आए
- अनवर शऊर


आज 'महवर' है इस क़दर तन्हा
जैसे ख़ुद से भी राब्ता टूटा
- मेहवर नूरी

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