Tuesday, March 3, 2020

है मुश्किलों का दौर, तो क्या हंसना हंसाना छोड़ दूं?

है  मुश्किलों का दौर, तो क्या हंसना हंसाना छोड़ दूं?
क्या  तन्हाइयों में बैठ कर, मिलना मिलाना छोड़ दूँ?

वक़्त का भी क्या पता कब दिखा दे अपने कारनामें,
तो क्या मरने के खौफ से, मैं जीना जिलाना छोड़ दूं

यारो हुजूम दिल की हसरतों का कम न होगा कभी,
तो क्या रुसबाइयों से डर के, सपना सजाना छोड़ दूं?

माना कि आजकल मोहब्बतें भी हो चुकी हैं मतलबी,
तो क्या प्यार जैसी पहल को, करना कराना छोड़ दूं?

न जाने मिलेंगी कितनी रुकावटें जीवन के सफर में,
तो क्या खलल से भयभीत हो, चलना चलाना छोड़ दूं?

दोस्त ये आंधियां  ये तूफ़ान तो आते रहेंगे उम्र भर,
तो क्या डर के उनके नाम से, बसना बसाना छोड़ दूं! 

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