Thursday, June 8, 2023

कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई

कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई

आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई 


फिर यूँ हुआ कि वक़्त का पाँसा पलट गया 
उम्मीद जीत की थी मगर मात हो गई 

सूरज को चोंच में लिए मुर्ग़ा खड़ा रहा 
खिड़की के पर्दे खींच दिए रात हो गई 

वो आदमी था कितना भला कितना पुर-ख़ुलूस 
उस से भी आज लीजे मुलाक़ात हो गई 

रस्ते में वो मिला था मैं बच कर गुज़र गया 
उस की फटी क़मीस मिरे साथ हो गई 

नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए 
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई 

निदा फ़ाज़ली

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