Saturday, June 17, 2023

वे मुस्काते फूल नहीं, जिनको आता है मुरझाना

1)

मधुबेला है आजमधुबेला है आजअरे तू जीवन-पाटल फूल!

आई दुख की रात मोतियों की देने जयमालसुख की मंद बतास खोखली पलकें देदे ताल;

डर मत रे सुकुमार!तुझे दुलराने आये शूल!

अरे तू जीवन-पाटल फूल!

भिक्षुक सा यह विश्व खड़ा है पाने करुणा प्यार;हंस उठ रे नादान खोल दे पंखुरियों के द्वार;

रीते कर ले कोषनहीं कल सोना होगा धूल!

अरे तू जीवन-पाटल फूल!

2)
झिलमिलाती रातझिलमिलाती रात मेरी!

सांझ के अंतिम सुनहलेहास सी चुपचाप आकर,मूक चितवन की विभा-तेरी अचानक छू गई भर;

बन गई दीपावली तब आंसुओं की पांत मेरी!

अश्रु घन के बन रहे स्मित-सुप्त वसुधा के अधर परकंज में साकार होतेवीचियों के स्वप्न सुंदर,

मुस्कुरा दी दामिनी में सांवली बरसात मेरी!

क्यों इसे अंबर न निजसूने हृदय में आज भर ले?क्यों न यह जड़ में पुलक का,प्राण का संचार कर ले?

है तुम्हारे श्वास के मधु-भार-मंथर वात मेरी!

3)
क्यों मुझे प्रिय!क्यों मुझे प्रिय हो न बंधन!

बन गया तम-सिन्धु का, आलोक सतरंगी पुलिन-सा;रजभरे जग बाल से हैं; अंक विद्युत का मलिन-सा;

स्मृति पदल पर कर रहा अबवह स्वयं निज रूप-अंकन!

चांदनी मेरी अमा का, भेंट कर अभिषेक करती;मृत्यु-जीवन के पुलिन दो आज जागृत एक करती,

हो गया अब दूत प्रिय काप्राण का संदेश, स्पंदन!

सजनि मैंने स्वर्ण-पिंजर में प्रलय का वात पाला;आज पुंजीभूत तम को कर, बना डाला उजाला;

तूल से उर में समा करहो रही नित ज्वाल चंदन!

आज विस्मृत-पंथ में निधि से मिले पद-चिन्ह उनकेवेदना लौटा रही है विफल खोये स्वप्न गिनके;

घुल हुई इन लोचनों मेंचिर प्रतीक्षा पूत अंजन!

आज मेरा खोज-खग गाता चला लेने बसेरा;कह रहा सुख अश्रु से ‘तू है चिरंतन प्यार मेरा’,

बन गए बीते युगों केविकल मेरे श्वास स्पंदन!

बीन-बंदी तार की झंकार है आकाशचारी;धूलि के इस मलिन दीपक से बंधा है तिमिरहारी

बांधती निर्बंध को मैंबंदिनी निज बेड़ियां गिन!

नित सुनहली सांझ के पद से लिपट आता अंधेरा!पुलख-पंखी विरह पर उड़ आ रहा है मिलन मेरा;

कौन जाने है बसा उस पारतम या रागमय दिन!

4)
मेरे गीले नयनप्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती!

श्वास में सपने कर गुम्फित,बंदनवार वेदना-चर्चित,भर दुख से जीवन का घट नितमूक क्षणों में मधुर भरूंगी भारती!

दृग मेरे दो दीपक झिलमिल,भर आंसू का स्नेह रहा ठुल,सुधि तेरी अविराम रही जल,पद-ध्वनि पर आलोग रहूंगी वारती!

यह लो प्रिय! निधियोंमय जीवन,जग अक्षय स्मृतियों का धन,सुख-सोना करुणा-हीरक-कण,तुमझे जीता आज तुम्हीं को हारती!

5)
अधिकारवे मुस्काते फूल, नहीं-जिनको आता है मुरझाना,वे तारों के दीप, नहीं-जिनको भाता है बुझ जाना;

वे नीलम के मेघ, नहीं-जिनको है घुल जाने की चाह,वह अनंत- ऋतुराज, नहीं-जिसने देखी जाने की राह.

वे सूने से नयन, नहीं-जिनमें बनते आंसू-मोती,वह प्राणों की सेज, नहींजिसमें बेसुध पीड़ा सोती;

ऐसा तेरा लोक, वेदना-नहीं नहीं जिसमें अवसाद,जलना जाना नहीं, नहीं-जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगातोरी करुणा का उपहार?रहने दो हे देव! अरेयह मेरे मिटने का अधिकार!

महादेवी वर्मा 

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