एक
जो पुण्य करता है वह देवता बन जाता है
जो पाप करता है वह पशु बन जाता है
और जो प्रेम करता है वह आदमी बन जाता है
जब मैंने प्रेम किया तो मुझे लगा जीवन आकर्षण है,
जब मैंने भक्ति की तब मुझे लगा जीवन समर्पण है
किन्तु जब मैंने सेवाव्रत लिया तब
मुझे पता चला कि जीवन सबसे पहले सर्जन है।जब मैं बैठा था तो समझता था कि जीवन उपस्थिति है,
जब मैं खड़ा था तब समझता था कि जीवन स्थिति है,
किन्तु जब मैं चलने लगा तब लगने लगा, 'जीवन गति है।'जब तक मैं पुकारता रहा तब तक समझता
रहा कि जीवन तुम्हारी आवाज़ है
और जब मैं स्वयं को पुकारने लगा तो
कहने लगा जीवन अपनी ही आवाज़ है
किन्तु जिस दिन मैंने संसार को पुकारना
शुरु किया है उस दिन से मुझे
लगने लगा है कि जीवन मेरी और तुम्हारी
नहीं, उन सबकी आवाज़ है जिनकी कि
कोई आवाज़ ही नहीं है।
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