Monday, June 12, 2023

'पथ देख बिता दी रैन मैं प्रिय पहचानी नहीं'

पथ देख बिता दी रैन 

मैं प्रिय पहचानी नहीं


तम ने धोया नभ-पंथ 
सुवासित हिमजल से; 
सूने आँगन में दीप 
जला दिए झिल-मिल से; 
आ प्रात बुझा गया कौन 
अपरिचित, जानी नहीं! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं! 

धर कनक-थाल में मेघ 
सुनहला पाटल सा, 
कर बालारूण का कलश 
विहग-रव मंगल सा, 
आया प्रिय-पथ से प्रात- 
सुनायी कहानी नहीं! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं ! 

नव इन्द्रधनुष सा चीर 
महावर अंजन ले, 
अलि-गुंजित मीलित पंकज- 
नूपुर रूनझुन ले, 
फिर आयी मनाने साँझ 
मैं बेसुध मानी नहीं! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं! 

इन श्वासों का इतिहास 
आँकते युग बीते; 
रोमों में भर-भर पुलक 
लौटते पल रीते; 
यह ढुलक रही है याद 
नयन से पानी नहीं! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं! 

अलि कुहरा सा नभ विश्व 
मिटे बुद्बुद्-जल सा; 
यह दुख का राज्य अनन्त 
रहेगा निश्चल सा; 
हूँ प्रिय की अमर सुहागिनि 
पथ की निशानी नहीं! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं! 


महादेवी वर्मा 

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