लो! हो ही गया दाखिला खारिज जहान से,
शिकवे-गिले सब मिट गए मालिक मकान से।
जबकि घर ही बैठे हो गईं पूरी जरुरतें,
बाकी रहा सामान क्या लाना दुकान से।
तुम इलजाम अपने सिर भला लेते हो क्यों,
वो मिट रहेंगे आखिरिश खुद ही थकान से।
करने को क्या बाकी रहा अब जीस्त में,
छुट गया जब आखरी सर भी कमान से।
‘’ की जिन्दादिली की बात क्या,
बदले हैं रुख हवाओं के अपने रुझान से।
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