1)
दरीचा-हा-ए-ख़यालचाहता हूं कि भूल जाऊं तुम्हेंऔर ये सब दरीचा-हा-ए-ख़यालजो तुम्हारी ही सम्त खुलते हैंबंद कर दूं कुछ इस तरह कि यहांयाद की इक किरन भी आ न सके
चाहता हूं कि भूल जाऊं तुम्हेंऔर ख़ुद भी न याद आऊं तुम्हेंजैसे तुम सिर्फ़ इक कहानी थींजैसे मैं सिर्फ़ इक फ़साना था
2)
अजनबी शामधुंद छाई हुई है झीलों परउड़ रहे हैं परिंद टीलों परसब का रुख़ है नशेमनों की तरफ़बस्तियों की तरफ़ बनों की तरफ़
अपने गल्लों को ले के चरवाहेसरहदी बस्तियों में जा पहुंचेदिल-ए-नाकाम मैं कहां जाऊंअजनबी शाम मैं कहां जाऊं
3)
सज़ाहर बार मेरे सामने आती रही हो तुमहर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूं मैंतुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुममैं कौन हूं ये ख़ुद भी नहीं जानता हूं मैंतुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो अज़ाब मेंऔर इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूं मैं
तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उस का ख़ुदा नहींपस सर-ब-सर अज़िय्यत ओ आज़ार ही रहोबेज़ार हो गई हो बहुत ज़िंदगी से तुमजब बस में कुछ नहीं है तो बेज़ार ही रहोतुम को यहां के साया ओ परतव से क्या ग़रज़तुम अपने हक़ में बीच की दीवार ही रहो
मैं इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-मेहर ही रहातुम इंतिहा-ए-इश्क़ का मेआ’र ही रहोतुम ख़ून थूकती हो ये सुन कर ख़ुशी हुईइस रंग इस अदा में भी पुरकार ही रहो
मैं ने ये कब कहा था मोहब्बत में है नजातमैं ने ये कब कहा था वफ़ादार ही रहोअपनी मता-ए-नाज़ लुटा कर मिरे लिएबाज़ार-ए-इल्तिफ़ात में नादार ही रहो
जब मैं तुम्हें नशात-ए-मोहब्बत न दे सकाग़म में कभी सुकून-ए-रिफ़ाक़त न दे सकाजब मेरे सब चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैंजब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैंफिर मुझ को चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहींतन्हा कराहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं
4)
नाकाराकौन आया हैकोई नहीं आया है पागल
तेज़ हवा के झोंके से दरवाज़ा खुला हैअच्छा यूं है
बेकारी में ज़ात के ज़ख़्मों की सोज़िश को और बढ़ानेतेज़-रवी की राहगुज़र सेमेहनत-कोश और काम के दिन कीधूल आई है धूप आई हैजाने ये किस ध्यान में था मैंआता तो अच्छा कौन आताकिस को आना था कौन आता
5)
शायदमैं शायद तुम को यकसर भूलने वाला हूंशायद जान-ए-जां शायद
कि अब तुम मुझ को पहले से ज़ियादा याद आती होहै दिल ग़मगीं बहुत ग़मगीं
कि अब तुम याद दिलदाराना आती होशमीम-ए-दूर-मांदा हो
बहुत रंजीदा हो मुझ सेमगर फिर भी
मशाम-ए-जां में मेरे आश्ती-मंदाना आती होजुदाई में बला का इल्तिफ़ात-ए-मेहरमाना है
क़यामत की ख़बर-गीरी हैबेहद नाज़-बरदारी का आलम है
तुम्हारे रंग मुझ में और गहरे होते जाते हैंमैं डरता हूं
मिरे एहसास के इस ख़्वाब का अंजाम क्या होगाये मेरे अंदरून-ए-ज़ात के ताराज-गर
जज़्बों के बैरी वक़्त की साज़िश न हो कोईतुम्हारे इस तरह हर लम्हा याद आने से
दिल सहमा हुआ सा हैतो फिर तुम कम ही याद आओ
मता-ए-दिल मता-ए-जां तो फिर तुम कम ही याद आओबहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
सभी कुछ तो न बह जाएकि मेरे पास रह भी क्या गया है
कुछ तो रह जाए
6)
रम्ज़तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझेमेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहींमेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हेंमेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ परइन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहनमुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकताज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता
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