आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ये चाँदनी रात कुछ देर में ढल जाएंगी,
इश्क़ की कहानी आज ये आँखें दोहराएंगी। इन टूटते तारों से शिकवा-गिला क्या करे, नादान थे जो इनसे इक-दूजे को माँगा किए।
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