कुछ भी नहीं है मेरे पास तेरी यादों के सिवा।
दरिया किनारे बैठ कर हुई बातों के सिवा।।
घंटों छत पर बैठना इक - दूजे को निहारना।
इक-दूजे के लिए सुलगते जज़्बातों के सिवा।।
हंसते- हंसते ज़िन्दगी कट गई तेरे आगोश में।
आखिरी वक्त कुछ नहीं बचा तन्हा रातों के सिवा।।
सब कुछ बदल गया जहां में कुछ इस रफ़्तार से।
किस पर यकीं करे इंसान करामातों के सिवा।।
इक -दूसरे पर इल्ज़ाम लगाना आम हो गया।
कुछ भी नहीं बचा बाकी सवालातों के सिवा।।
कहने को तो ज़म्हूरित है हर एक मुल्क में।
खाली हैं सब इमारतें 'ओम' हवालातों के सिवा।।
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