तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
कहो सुनोगे आज हमारी,
या फिर अब भी समय नहीं है।
बकबक करता जाता हूँ मैं,
ध्यान तुम्हारा और कहीं है।
कहना सुनना लो रहने दु,
क्या रक्खा है इन बातों में।
मगर कभी घण्टो होती थी,
छुप-छुप कर उन मुलाकातों में।
हार गए है पर उस दिन हम,
इसी हार को जीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
याद तुम्हे है उन्ही दिनों हम,
नई नई गजलें कहते थे।
तुम्हे बिठा कर सपनों में ही,
घण्टो बतियाया करते थे।
नई नई कविता लिखते थे,
अब भी जो अच्छे लगते है।
यति गति छन्द राग नही पर,
शब्द शब्द सच्चे लगते है।
हर शब्दों में तुम्हें पता है?
तुझको ही मनमीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
किसी किताबो के झुरमुठ में,
पड़े हुए है यहीं कहीं पर।
बीवी बच्चों से डर से ही,
कभी छुपा कर रखा वहीं पर।
दबे दबे उन पन्नों से भी,
आह कभी तो उठती होगी।
उन गीतो को गा न सका पर,
गाऊँगा जब तुम बोलोगी।
उन गीतों में हमने मिलकर,
कभी प्रीत के रीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
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