Tuesday, June 6, 2023

वक्त में इतनी बनावट आ गयी

वक्त में इतनी बनावट आ गयी,

कि उम्र से पहले नज़ाकत आ गयी । 

धूप ओसारे चढ़ी, परबत हुई, 
छाँव में फिर-फिर नफासत आ गई । 

रूठना-रोना असल कुछ भी नहीं, 
दरअसल उनको सियासत आ गयी । 

इस क़दर कुछ दर्द सीने में उठा, 
कि होंठ पर उनके इबादत आ गयी । 

उनके आने पर मुझे लगता है अब, 
फिर कोई ज़िन्दा कयामत आ गयी । 

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