Thursday, June 8, 2023

भवेश दिलशाद की गजलें

और कुछ दिन देखता जा देखता रह जाएगा

सूख जाएगी नदी, ये पुल खड़ा रह जाएगा।

तुझको परछाई नहीं, पत्थर दिखाएगा कुआं

और कूएं के पास फूटा इक घड़ा रह जाएगा

एक प्यासा, दूसरे से, प्यास का मांगेगा हल

आसमानों की तरफ हर सर उठा रह जाएगा

गर्म आंखें, सुलगी सांसें और दहकता हर बदन

रहमतों की बारिशों को खोजता रह जाएगा

बूंदें, बादल से नहीं आंकों से बरसेंगी यहां

बहते झरने की तले सूखा जिया रह जाएगा

गोलमेजें जब उठेंगी बात करके प्यास पर

बिसलरी की बोतलों का मुंह खुला रह जाएगा

हादसे की चाप है दिलशाद साहिब ये गज़ल

जो समझ लेगा वो शायद कुछ बचा रहा जाएगा।

-------


चुप रहा मैं तो ज़ात बिगड़ेगी

बोलने से भी बात बिगड़ेगी।


बंदबुक्का फाड़ के रोया कोई उसका हुक्कापानी बंद

उसके हक़ में लब खुलते हैं उनके कसीदे शेरो-सुखनउनके जुमले सबके मुंह में यूं हैं जबानो-बानी बंद।



ये पूछिए अब, कौन-सी आफत नहीं देखीकहते ही नहीं बनता कयामत नहीं देखी।

दर्याओं में, क्या कूज़े की जुर्अत नहीं देखीया कूज़े में, दर्याओं की सुहबत नहीं देखी।

कहता है खतरनाक जो, कुछ जानवरों कोउसने अभी तक इन्सान की फितरत नहीं देखी।


बताओ कैसे, कहां तुमने कल गज़ारी रातउठायी सूद पे या कर्ज पर उतारी रात

उतारा, टांग दिया रेनकोट खूंटी परफिर उससे रिसती रही बूंद-बूंद सारी रात।

यही हिसाब है अपनी जिंदगी का दोस्तरकम में दिन का किया सौदा और उधारी रात।


भवेश दिलशाद 


No comments: