ज़िक्र तेरा लबों पे क्या आया ।
चैन दिल को, फिर नहीं आया ।।
खुद से बिछड़े न हम मिले खुद से ।
लौट कर वक़्त फिर नहीं आया ।।
दर्द इतना अज़ीज़ था मुझको ।
अश्क़ आंखो में फिर नहीं आया ।।
आज भी ढूंढती नज़र उसको ।
लौट कर जो,फिर नहीं आया ।।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment