मन्द मन्द तेरा
यूं छुप कर मुस्कुराना
अल्फाजों का लबों तक
यूं आकर लौट जाना
झलकता है प्यार आंखों से
पर नज़रों का यूं चुराना
कुछ ना कहते हुए भी
तेरा सब कुछ कह जाना
याद है मुझे अब भी
तेरा मेरा वो फसाना
हमारी मोहब्बत का
"वो गुज़रा ज़माना"
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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