फ़ुर्क़त में मैं
तेरे बिना कैसे
जी पाऊँगा?
मत आजमाओ इतना
मैं टूट जाऊंगा
इख़्तियार ख़ुद पे
मैं रखता हूँ
पर पैमाना सब्र का
छलक जाए तो क्या करूँ
तलबगार हूँ, तेरा
और इम्तिहान न लो मेरा॥
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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