फिर वो बरसात ध्यान में आई,
तब कहीं जान जान में आई
फूल पानी में गिर पड़े सारे
अच्छी जुम्बिश चटान में आई
रौशनी का अता-पता लेने
शब-ए-तीरा जहान में आई
रक़्स-ए-सय्यार्गां की मंज़िल भी
सफ़र-ए-ख़ाक-दान में आई
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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