चलो फिर से,नयी शुरुआत करते हैं।
मायूस दिन की,यूं हसीं रात करते हैं।।
तर्क-ए-ताल्लुक से , हांसिल है क्या।
कुछ देर ही सही, चलो बात करते हैं।।
हमारे दरम्यां,ये गिला शिकवा है क्यूं।
हम मिलकर, ये तहकीकात करते हैं।।
अब्र हमसे, खफा हो गये हैं, तो क्या।
आब-ए-चश्म की यूं बरसात करते हैं।।
ये दर्द-ए-दिल अपना बांटने के लिए।
साझा यूं अपने,अहसासात करते हैं।।
No comments:
Post a Comment