होता मीत जो अपना वो मनहर मन को भाता है
कि पिछले जन्म का कोई जो उससे अपना नाता है
सबायें छू के रूहों को गुजरतीं दूर तक यूँहीं
तभी तो फूल ये शायद ख़ुशी में मुस्कुराता है
उनींदी आँख है अब तक तेरी जो याद सी आती
यूँही फिर आज भी अपना जो जग राता है
हो लगी दिल की अजी फिर और क्या कहिये
दीवाना बेखुदी में वो तराना मस्त गाता है
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