स्निग्ध़ तेरे...
इस बद़न को...
देख कर...
निग़ाहें मेरी जैसे फ़िसल गई...!
चाहत...
मेरे मन की...
क़रीब आकर तुम्हारे...
तेरे दिल में...
समा कर पूरी...
आर-पार जैसे निकल गई...!
सांसे जैसे...
तेरी भी...
पास आकर मेरे...
मदहोशी में जैसे मचल गई...!
कामनाएं...
जैसे हमारी...
स्याह भरी इस रात में...
मोम-सी होकर पिघल गई...!
घड़ियां हमारी...
टन-टना कर...
द्वादश की सूईयों जैसे...
एक होकर...
"विचित्र"
ल़म्हों को भीतर अपने निग़ल गई...!
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