Monday, June 5, 2023

निग़ाहें मेरी जैसे फ़िसल गई

स्निग्ध़ तेरे...

इस बद़न को... 
देख कर... 
निग़ाहें मेरी जैसे फ़िसल गई...! 
चाहत... 
मेरे मन की... 
क़रीब आकर तुम्हारे... 
तेरे दिल में... 
समा कर पूरी... 
आर-पार जैसे निकल गई...! 
सांसे जैसे... 
तेरी भी... 
पास आकर मेरे... 
मदहोशी में जैसे मचल गई...! 
कामनाएं... 
जैसे हमारी... 
स्याह भरी इस रात में... 
मोम-सी होकर पिघल गई...! 
घड़ियां हमारी... 
टन-टना कर... 
द्वादश की सूईयों जैसे... 
एक होकर... 
"विचित्र" 
ल़म्हों को भीतर अपने निग़ल गई...! 

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