Wednesday, June 7, 2023

जिन जिन को था ये इश्क़ का आज़ार मर गए

जिन जिन को था ये इश्क़ का आज़ार मर गए


अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गए 

यूँ कानों-कान गुल ने न जाना चमन में आह 
सर को पटक के हम पस-ए-दीवार मर गए 

सद कारवाँ वफ़ा है कोई पूछता नहीं 
गोया मता-ए-दिल के ख़रीदार मर गए 

मजनूँ न दश्त में है न फ़रहाद कोह में 
था जिन से लुत्फ़-ए-ज़िंदगी वे यार मर गए 

गर ज़िंदगी यही है जो करते हैं हम असीर 
तो वे ही जी गए जो गिरफ़्तार मर गए 

अफ़्सोस वे शहीद कि जो क़त्ल-गाह में 
लगते ही उस के हाथ की तलवार मर गए 

तुझ से दो-चार होने की हसरत के मुब्तिला 
जब जी हुए वबाल तो नाचार मर गए 

घबरा न 'मीर' इश्क़ में उस सहल-ए-ज़ीस्त पर 
जब बस चला न कुछ तो मिरे यार मर गए 



Mir Taqi Mir

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