आंखों में अपनी छुपा लिया मुझको
किसीको को भी बताया क्यों नही
गर करते थे मोहब्बत मुझसे इतनी
तो फिर मुझे कभी जताया क्यों नही
अकेले ही गम ए इश्क सहते रहे
छुपछुपके कभी रोते कभी हसते रहे
खुद जलते रहे मेरी बेरुखी से ऐसेही
दिलसे मुझे वाकिफ कराया क्यो नही
झुलस रहे थे हम तपिश ए दुनिया से
जुल्फों में अपनी छुपाया क्यों नही
वजह मेरी नाराजगी की गलत फहमी थी
तो फिर मुझे प्यार से मनाया क्यों नही
हटाते नही परदा वो चेहरे से अपने और
पूछते है मुझ से मेरी नाराजगी का सबब
अब कैसे कहे कोई प्यासा समंदर से की
था बेपनाह पानी फिर पिलाया क्यों नहीं
हो जाय अगर उनसे मुलाकात कभी
सवाल उनसे बस एक ही पूछना है
जलाया था दिल मे जो चिराग मुहब्बत का
बिछड़ने से पहले उसे बुझाया क्यो नही
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