Tuesday, March 31, 2020

गरीबी, मुफलिसी शायरी

ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक 
ख़ुश-हालियों के शहर में क्या कुछ नहीं किया 
- इक़बाल साजिद

खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए 
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को 
- नज़ीर बाक़री

अब ज़मीनों को बिछाए कि फ़लक को ओढ़े
मुफलिसी तो भरी बरसात में बे-घर हुई है
- सलीम सिद्दीक़ी

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए
-हफ़ीज़ जालंधरी

दरिया दरिया घूमे मांझी पेट की आग बुझाने
पेट की आग में जलने वाला किस किस को पहचाने
- जमीलुद्दीन आली

बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है
- बेकल उत्साही
हटो काँधे से आँसू पोंछ डालो वो देखो रेल-गाड़ी आ रही है 
मैं तुम को छोड़ कर हरगिज़ न जाता ग़रीबी मुझ को ले कर जा रही है 
- अज्ञात

जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन 
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को 
- बिस्मिल अज़ीमाबादी
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या 
मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं 
- रियाज़ ख़ैराबादी

अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह 
रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया 
- इबरत मछलीशहरी

Monday, March 30, 2020

मशवरा शायरी

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी 
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन 
- अल्लामा इक़बाल

बिछड़ने का इरादा है तो मुझ से मशवरा कर लो 
मोहब्बत में कोई भी फ़ैसला ज़ाती नहीं होता 
- अफ़ज़ल ख़ान

ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर 
आराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता 
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है 
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में 
- अल्लामा इक़बाल
साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का 
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ 
- कैफ़ भोपाली

हाँ समुंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोच 
डूबने से पहले गहराई का अंदाज़ा लगा 
- अर्श सिद्दीक़ी
ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी 
बुरे होते हो अच्छे हो के ये क्या बद-ज़बानी है 
- अमीर मीनाई

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल 
दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल 
- बहादुर शाह ज़फ़र
इस से पहले कि लोग पहचानें 
ख़ुद को पहचान लो तो बेहतर है 
- दिवाकर राही

देख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीर 
घर बनाता है तो सब से पहले दरवाज़ा लगा 
- अर्श सिद्दीक़ी

कुंवर बेचैन की ग़ज़लों से चुनिंदा शेर

शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई सी तुम 
ज़िंदगी है धूप, तो मद-मस्त पुर्वाई सी तुम

चाहे महफ़िल में रहूँ चाहे अकेले में रहूँ 
गूँजती रहती हो मुझ में शोख़ शहनाई सी तुम

मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यूँ डर रखूँ 
ज़िंदगी आ तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ 

राहों से जितने प्यार से मंज़िल ने बात की 
यूँ दिल से मेरे आप के भी दिल ने बात की 
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए 
ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए

ये लफ़्ज़ आइने हैं मत इन्हें उछाल के चल 
अदब की राह मिली है तो देख-भाल के चल 
बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो 
बस एक तुम पे नज़र है हमारे साथ रहो 

कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई 
आप कहियेगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई 
अपनी सियाह पीठ छुपाता है आइना 
सब को हमारे दाग़ दिखाता है आइना 

आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े 
इतना कह के ऊँची शाख़ों से कई फल गिर पड़े 
सुनो अब यूँ ही चलने दो न कोई शर्त बाँधो 
मुझे गिर कर सँभलने दो न कोई शर्त बाँधो 

उँगलियाँ थाम के ख़ुद चलना सिखाया था जिसे 
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे

Sunday, March 29, 2020

कितना गहरा तम हो पर तुम शमा जलाए चलना रे

ऐ शमा तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रात
हंस कर गुज़ार या इसे रो कर गुज़ार दे
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़


मैं ढूंढ़ रहा हूं मिरी वो शमा कहां है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे
- बहज़ाद लखनवी

परवाने आ ही जाएंगे खिंच कर ब-जब्र-ए-इश्क़
महफ़िल में सिर्फ़ शमा जलाने की देर है
- माहिर-उल क़ादरी


देख लेते हैं अंधेरे में भी रस्ता अपना
शमा एहसास के मानिंद जली रहती है
- ज़फर इमाम

तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन
ये एक शमा अँधेरे ने ख़ुद जला ली है
- ताजदार आदिल


दिन अंधेरों की तलब में गुज़रा
रात को शम्अ जला दी हम ने
- ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शमा जलाना भूल गए
- अंजुम लुधियानवी


रात भर शमा जलाता हूं बुझाता हूं 'सिराज'
बैठे बैठे यही शग़्ल-ए-शब-ए-तन्हाई है
- सिराज लखनवी

Saturday, March 28, 2020

उम्मीद शायरी

उम्मीद कीजिए अगर उम्मीद कुछ नहीं
ग़म खाइए बहुत जो ख़याल-ए-सुरूर है
- इस्माइल मेरठी


पता है कि वहां पानी नहीं है
मगर उम्मीद सहरा छानती है
- अश्क अलमास

एक उम्मीद जाग उठती है
आसमां जब भी देखता है मुझे
- बलवान सिंह आज़र


सिर्फ़ उस के दर से उम्मीद
सिर्फ़ अपना आसरा है
- इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

दर्द ग़म अश्क और मायूसी
तेरी उम्मीद सब पे भारी है
- धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़


ऐ काश वफ़ा की रौशनी से
उम्मीद का इक दिया जलाऊँ
- परवीन फ़ना सय्यद

फिर से बादल हैं आसमानों में
अब्र उम्मीदें ले कर आया है
- उज़ैर रहमान


धूप कभी चमकेगी इस उम्मीद पे मैं
बर्फ़ के दरिया में सदियों से लेटा हूँ
- अम्बर बहराईची

जब भी निकला सितारा-ए-उम्मीद
कोहर के दरमियान से निकला
- शकेब जलाली

 

प्रेरणा motivational शायरी

मुश्किल का सामना हो तो हिम्मत न हारिए 
हिम्मत है शर्त साहिब-ए-हिम्मत से क्या न हो 
- इम्दाद इमाम असर

'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक 
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है 
- अख़्तर होशियारपुरी

ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक 
हश्र तक जलता है नेकी का चराग़ 
- ज़हीर देहलवी

सारे पत्थर नहीं होते हैं मलामत का निशाँ 
वो भी पत्थर है जो मंज़िल का निशाँ देता है 
- परवेज़ अख़्तर
ये भी तो सोचिए कभी तन्हाई में ज़रा 
दुनिया से हम ने क्या लिया दुनिया को क्या दिया 
- हफ़ीज़ मेरठी

क़तरा न हो तो बहर न आए वजूद में 
पानी की एक बूँद समुंदर से कम नहीं 
- जुनैद हज़ीं लारी
किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद' 
उन्हीं के नाम हैं दुनिया में जिन के काम अच्छे हैं 
- वाहिद प्रेमी

आस्ताँ भी कोई मिल जाएगा ऐ ज़ौक-ए-नियाज़ 
सर सलामत है तो सज्दा भी अदा हो जाएगा 
- जिगर बरेलवी

सफ़र लम्बा था ख़ुशबू का मगर आ ही गई घर तक

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक
सफ़र लम्बा था ख़ुशबू का मगर आ ही गई घर तक
- ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है
सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए
- हसीब सोज़

है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को
कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है
- शहरयार

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'ज़िंदगी के मायने' शेर

मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है
- अहसन मारहरवी


यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
यही ज़िंदगी हक़ीक़त यही ज़िंदगी फ़साना
- मुईन अहसन जज़्बी

ज़िंदगी ख़्वाब देखती है मगर
ज़िंदगी ज़िंदगी है ख़्वाब नहीं
- मक़बूल नक़्श


इसी का नाम शायद ज़िंदगी है
ख़ुशी की इक घड़ी तो इक ग़मी की
- अमजद नजमी

ज़िंदगी सुंदर ग़ज़ल है दोस्तो
ज़िंदगी को गुनगुनाना चाहिए
- आज़िम कोहली


तौलती भी रही डोलती भी रही
कुछ इधर ज़िंदगी कुछ उधर ज़िंदगी
- इमरान शमशाद

ज़िंदगी यूं भी ज़िंदगी ठहरी
कटते कटते भी देर लगती है
- आबिद सिद्दीक़


ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते
रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए
- अंजुम रहबर

जुआ है ज़िंदगी जैसे
जो जीते उस को हासिल हूं
- पूजा भाटिया


घोंसला ज़िंदगी का
साँस की शाख़ पर है
- अब्दुस्समद ’तपिश’

Friday, March 27, 2020

आत्मविश्वास शायरी

चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से 
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए 
- असग़र गोंडवी

चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल 
हौसला किस का बढ़ाता है कोई 
- शकील बदायुनी

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज 
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं 
- मिर्ज़ा ग़ालिब

इन अंधेरों से परे इस शब-ए-ग़म से आगे 
इक नई सुब्ह भी है शाम-ए-अलम से आगे 
- इशरत क़ादरी

साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन 
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है 
- आल-ए-अहमद सूरूर
एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं 
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने 
- अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

हार हो जाती है जब मान लिया जाता है 
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है 
- शकील आज़मी
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम 
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे 
- बशीर बद्र

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे 
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा 
- निदा फ़ाज़ली
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही 
जला के अपना दिया रौशनी मकान में ला 
- अकबर हैदराबादी

तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शाँ होती है 
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसाँ होती है 
- हफ़ीज़ बनारसी

'ख़ुद से बात करते’ शायरी

क्या हो जाता है इन हंसते जीते जागते लोगों को
बैठे बैठे क्यूं ये ख़ुद से बातें करने लगते हैं
- अमजद इस्लाम अमजद


ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
मैं ख़ुद को साबित करूँगा दावा नहीं करूँगा
- तैमूर हसन


पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
- शीन काफ़ निज़ाम

बदन का बोझ उठाना भी अब मुहाल हुआ
जो ख़ुद से हार के बैठे तो फिर ये हाल हुआ
- उमर फ़ारूक़


मेरी तन्हाई की पगडंडी पर
मेरे हम-राह ख़ुदा रहता है
- प्रीतपाल सिंह बेताब

मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
- जां निसार अख़्तर


ख़ुद की ख़ुद से बातें कर के
हम दोनों उक्ता भी चुके हैं
- रेनू नय्यर

न की जाती है औरों से मुलाक़ात एक लम्हे को
न हो पाती है ख़ुद से बात जब से तुम नहीं आए
- अनवर शऊर


आज 'महवर' है इस क़दर तन्हा
जैसे ख़ुद से भी राब्ता टूटा
- मेहवर नूरी

यह घटा घिरती रही पर भूमि पर बरसी नहीं

धीरे-धीरे उतर क्षितिज से 
आ वसंत-रजनी
तारकमय नव वेणी बंधन,
शीश-फूल कर शशि का नूतन
रश्मि-वलय सित घन-अवगुण्ठन,
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे
चितवन से अपनी 
पुलकती आ वसंत-रजनी

बांधे मयूख की डोरिन से किशलय के हिंडोरन में नित झूलिहौ,
शीत मंद समीर तुम्हें दुलराइहै अंक लगाय कबूलिहौ

महका है गुलाब उसी से यहां, उसे पा के प्रसन्न बतास रही,
कुछ गंध छिपाए हैं पंकज भी कुछ चंपक के फूल के पास रही

यह घटा घिरती रही पर भूमि पर बरसी नहीं
इस विपिन में तप्त एक निदाघ ही छाया हुआ है
पीत हर पल्लव हुआ हर फूल मुरझाया हुआ है
ताप से उबली तरंगें ज्वार उफ़नाया हुआ है
सूर्य-मंडल क्या अतिथि बन भूमि पर आया हुआ है

-महादेवी वर्मा 

वक्त, वक़्त शायरी

वक़्त ठहर सा जाएगा
रात आधी रह जाएगी
- मुग़नी तबस्सुम


आज तो मेरा दिल कहता है
तू इस वक़्त अकेला होगा
- नासिर काज़मी



दर्द से यूँ नजात कब होगी
वक़्त ठहरा हुआ सा लगता है
- बलबीर राठी


चाँद के उजले चेहरे पर
वक़्त का गहरा साया था
- बशीर अहमद शाद

लोग लम्हों में ज़िंदा रहते हैं
वक़्त अकेला इसी सबब से है
- साक़ी फ़ारुक़ी


वक़्त रहते समझ नहीं आता
जो मिला है हमें मिला क्यूँ है
- राज कौशिक

सर उठाती हुई मौजों से हवाओं ने कहा
वक़्त के साथ चलो वक़्त से उलझा न करो
- इक़बाल आसिफ़


हर एक सख़्त वक़्त के बाद और वक़्त है
निशाँ कमाल-ए-फ़िक्र का ज़वाल में मिला मुझे
- मुनीर नियाज़ी

झाँकने ताकने का वक़्त गया
अब वो हम हैं न वो ज़माना है
- यगाना चंगेज़ी


ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख
- निदा फ़ाज़ली

ठहराव शायरी

अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिसलन ये किनारों प ये ठहराव नदी का
सब साफ़ इशारे हैं कि गहराई बहुत है
- अखिलेश तिवारी
सफ़र अपने ही भीतर कर रहा हूँ
मिरा ठहराव मुद्दत से रवाँ है
- बकुल देव

ठहराव पानियों में है कितना अजीब सा
दरिया के ख़ुश-ख़िराम सफ़ीनों की ख़ैर हो
- शबनम शकील
अजब ठहराव था जिस में मसाफ़त हो रही थी
रवाना भी नहीं था और हिजरत हो रही थी
- फ़ज़्ल गीलानी

हर-नफ़स को अपनी मंज़िल का पता मिलता नहीं
जो जहाँ ठहराव हैं इक कारवाँ बनता गया
- कलीम अहमदाबादी
मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए
अब मुझे ख़ुद से निकलने की इजाज़त दी जाए
- सालिम सलीम

गुज़रते वक़्त की कोई निशानी साथ रखता हूँ
कि मैं ठहराव में भी इक रवानी साथ रखता हूँ
- आफ़ताब हुसैन

जो किसी दर पे न ठहरे वो हवा लगती हो
ज़ुल्फ़ लहराए तो आँचल में छुपा लेती हो
- साहिर लुधियानवी

मैं भी रुकता हूँ मगर रेग-ए-रवाँ की सूरत
मेरा ठहराव रवानी की तरह होता है
- फ़ैसल अजमी

वक्त, वक़्त शायरी

वक़्त ठहर सा जाएगा
रात आधी रह जाएगी
- मुग़नी तबस्सुम


आज तो मेरा दिल कहता है
तू इस वक़्त अकेला होगा
- नासिर काज़मी



दर्द से यूँ नजात कब होगी
वक़्त ठहरा हुआ सा लगता है
- बलबीर राठी


चाँद के उजले चेहरे पर
वक़्त का गहरा साया था
- बशीर अहमद शाद

लोग लम्हों में ज़िंदा रहते हैं
वक़्त अकेला इसी सबब से है
- साक़ी फ़ारुक़ी


वक़्त रहते समझ नहीं आता
जो मिला है हमें मिला क्यूँ है
- राज कौशिक

सर उठाती हुई मौजों से हवाओं ने कहा
वक़्त के साथ चलो वक़्त से उलझा न करो
- इक़बाल आसिफ़


हर एक सख़्त वक़्त के बाद और वक़्त है
निशाँ कमाल-ए-फ़िक्र का ज़वाल में मिला मुझे
- मुनीर नियाज़ी

झाँकने ताकने का वक़्त गया
अब वो हम हैं न वो ज़माना है
- यगाना चंगेज़ी


ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख
- निदा फ़ाज़ली

Thursday, March 26, 2020

हमें इल्म न था

क़ज़ा इतने क़रीब से गुज़रेगी, हमें इल्म न था,
मज़ा जीने का ज़िन्दगी ही छीन लेगी, हमें इल्म न था।
ये क्या मर्ज़ बरपा है इलाही, हम इंसानों पर,
सज़ा भी इतनी बेरहम होगी, हमें इल्म न था।
दुआ यही है कि सबक़ तेरा सीख लिया हमने,
दुआ यही है, अब ये तूफान संभाल ले मौला।
दुआ यही है हम मोहताज हैं तेरी हमदर्दी के,
दुआ यही है सबकी कश्ती संभाल ले मौला।

दुआ शायरी

ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है?
दुआ तो माँगिये 'आतिश' कभी दुआ की तरह
- आतिश बहावलपुरी


यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
ख़ुदा जो होता अगर क्या ख़ुदा नहीं सुनता
- सय्यदा अरशिया हक़

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
दुआ के दिन हैं मुसलसल दुआ किए जाएँ
- इफ़्तिख़ार आरिफ़


दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे
- बशीर बद्र

आते हैं बर्ग-ओ-बार दरख़्तों के जिस्म पर
तुम भी उठाओ हाथ कि मौसम दुआ का है
- असअ'द बदायुनी


भूल ही जाएं हम को ये तो न हो
लोग मेरे लिए दुआ न करें
- हसरत मोहानी

वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
वही दुआ भी वही हासिल-ए-दुआ भी है
- अताउल हक़ क़ासमी


क्या क्या दुआएँ माँगते हैं सब मगर 'असर'
अपनी यही दुआ है कोई मुद्दआ न हो
- असर लखनवी

उठे हैं हाथ तो अपने करम की लाज बचा
वगरना मेरी दुआ क्या मिरी तलब क्या है
- सिद्दीक़ मुजीबी


हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
- दाग़ देहलवी

हौसला शायरी

मस्जिद हो मदरसा हो कि मज्लिस कि मय-कदा
महफ़ूज़ शर से कुछ है तो घर है चले-चलो
- वहीद अख़्तर

ज़िंदगी को हौसला देने के ख़ातिर
ख़्वाहिशों को रेज़ा रेज़ा चुन रहा हूँ
- महफूजुर्रहमान आदिल

ऐ अदम के मुसाफ़िरो हुश्यार
राह में ज़िंदगी खड़ी होगी
- साग़र सिद्दीक़ी

इस लिए होशियार रहता हूँ
क्या ख़बर कब वो बे-ख़बर हो जाए
- अहमद महफ़ूज़
 
इस दर्जा होशियार तो पहले कभी न थे
अब क्यूँ क़दम क़दम पे सँभलने लगे हैं हम
- वाली आसी

सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़' 
तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं
-अहमद महफ़ूज़
उसी ने बख़्शा है मुझ को शुऊ'र जीने का
जो मुश्किलों की घड़ी बार बार आई है
- महफूजुर्रहमान आदिल

वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
- महफूजुर्रहमान आदिल
ज़रा महफ़ूज़ रस्तों से गुज़रना
तुम्हारी शहर में शोहरत बहुत है
- अंजुम बाराबंकवी

अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या
ग़ैर के गुलशन से सौ दर्जा भला अपना क़फ़स
- हीरा लाल फ़लक देहलवी

हम परों से नहीं, हौंसलों से उड़ते हैं

कभी महक की तरह....हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुंए की तरह.....पर्बतों से उड़ते हैं....
ये कैंचियां हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी,
के हम परों से नहीं, हौंसलों से उड़ते हैं......

Wednesday, March 25, 2020

मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता

वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
- वसीम बरेलवी

वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता
- वसीम बरेलवी

अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
तू नहीं ख़सारे में मैं नहीं ख़सारे में
- सरवत हुसैन

ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ
ऐसा न हो कि धोना पड़े ज़िंदगी से हाथ
- जावेद सबा

नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं
- हसरत मोहानी

ख़तरों' से सावधान करते शेर, शायरी

हाथ आँखों पे रख लेने से ख़तरा नहीं जाता 
दीवार से भौंचाल को रोका नहीं जाता 
-मुज़फ़्फ़र वारसी

तुम्हारे घर में दरवाज़ा है लेकिन तुम्हें ख़तरे का अंदाज़ा नहीं है
हमें ख़तरे का अंदाज़ा है लेकिन हमारे घर में दरवाज़ा नहीं है
- अज्ञात

आज शहरों में हैं जितने ख़तरे
जंगलों में भी कहाँ थे पहले
- अज़हर इनायती

ये हू का वक़्त ये जंगल घना ये काली रात
सुनो यहाँ कोई ख़तरा नहीं ठहर जाओ
- इरफ़ान सिद्दीक़ी

जिस के आग़ोश का हूँ दीवाना 
उस के आग़ोश ही से ख़तरा है 
-जौन एलिया

ख़तरे के निशानात अभी दूर हैं लेकिन
सैलाब किनारों पे मचलने तो लगे हैं
- निदा फ़ाज़ली
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
- मुनव्वर राना

एक ख़तरा है आने जाने में
इस सरा में है दूसरा सा कुछ
-शाहीन अब्बास

बुझे चराग़ों की सरगोशियों में ख़तरा है
हवा भी कान लगा कर सुने चराग़ों को
- साइम जी
वतन को कुछ नहीं ख़तरा निज़ाम-ए-ज़र है ख़तरे में
हक़ीक़त में जो रहज़न है वही रहबर है ख़तरे में
- हबीब जालिब

तो क्या अब कुछ भी दर-पर्दा नहीं है
ये जंगल है तो क्यूँ ख़तरा नहीं है
- शीन काफ़ निज़ाम

मुझे पड़ाव में ख़तरा सफ़र से बढ़ कर है
कि राहज़न है मिरे कारवाँ के अंदर से
- सनाउल्लाह ज़हीर
 
सच को काग़ज़ पे उतरने में हो ख़तरा शायद
मेरी सोची हुई हर बात ज़बानी ले जा
- सुरेन्द्र शजर

ये कह के मुझे 'राज़' वो सोने नहीं देता
हर गाम पे ख़तरा है अभी जागते रहना
- राज़ इलाहाबादी

हर एक क़दम पर है यहाँ जान का ख़तरा
अब सोच समझ कर ज़रा बाज़ार से निकलें
- शायान क़ुरैशी
 
तूफ़ाँ का ख़तरा सुन के न कर ख़ौफ़ इस क़दर
आख़िर ख़ुदा की बात नहीं नाख़ुदा की बात
- असद मुल्तानी

तपिश में धूप के होती है क़द्र साए की
न हो जो मौत का ख़तरा तो ज़िंदगी क्या है
- असग़र वेलोरी

जान का ख़तरा तो है ही जाल भी कमज़ोर है
मछलियों के शौक़ में पानी मगर देखेगा कौन
- फ़ारूक़ रहमान

Tuesday, March 24, 2020

थोड़े दिन की तो बात है अपने घर में रहो...

तूफ़ान के हालात है ना किसी सफर में रहो...
पंछियों से है गुज़ारिश अपने शजर में रहो...

ईद के चाँद हो अपने ही घरवालो के लिए...
ये उनकी खुशकिस्मती है उनकी नज़र में रहो...

माना बंजारों की तरह घूमे हो डगर डगर...
वक़्त का तक़ाज़ा है अपने ही शहर में रहो...

तुम ने खाक़ छानी है हर गली चौबारे की...
थोड़े दिन की तो बात है अपने घर में रहो...

Monday, March 23, 2020

दिल के रिश्ते अजीब रिश्ते हैं

इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल

 

इस तरह होश गँवाना भी कोई बात नहीं
और यूँ होश से रहने में भी नादानी है

शीशों के मकां कैसे हैं
कोई इस देश का मिल जाए तो इतना पूछे 
आजकल अपने मसीहा-नफ़सां कैसे हैं 
आंधियां तो सुना इधर भी आयी 
कोपलें कैसी हैं शीशों के मकां कैसे हैं
नीली नीली आंखें जैसे जमुनाजी का घाट
कई समंदर पार से आयी गोरी पिया के देस 
रूप विदेसी लेकिन जीवन पूरब का संदेस 
लम्बी लम्बी पलकें जिनमे तलवारों की काट 
नीली नीली आंखें जैसे जमुनाजी का घाट
तमाम शहर ने पहने हुए हैं दस्ताने
मैं किस के हाथ पे अपना लहू तलाश करूँ
तमाम शहर ने पहने हुए हैं दस्ताने

 

दिल के रिश्ते अजीब रिश्ते हैं
साँस लेने से टूट जाते हैं

मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं

किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
- अख़्तर सईद ख़ान

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
- इमाम बख़्श नासिख़

वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

यूं ही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
- बशीर बद्र


लौट गईं सब आवाज़ें
तुम भी अपने घर जाओ
- सालेह नदी

बंद पड़े हैं शहर के सारे दरवाज़े
ये कैसा आसेब अब घर घर लगता है
- कृष्ण कुमार तूर


दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इन अंधेरों से परे इस शब-ए-ग़म से आगे
इक नई सुब्ह भी है शाम-ए-अलम से आगे
- इशरत क़ादरी


ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी

वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
- महफूजुर्रहमान आदिल


हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएंगे
- बिस्मिल अज़ीमाबादी

इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
- नरेश कुमार शाद


इन्हीं ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा
अंधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
- अख़्तर शीरानी

Sunday, March 22, 2020

मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं

किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
- अख़्तर सईद ख़ान

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
- इमाम बख़्श नासिख़

हर हाल में क़ुबूल है उन की ख़ुशी मुझे

शकील बदायूंनी
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे

वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे

रोने पे अपने उन को भी अफ़्सुर्दा देख कर
यूँ बन रहा हूँ जैसे अब आई हँसी मुझे

यूँ दीजिए फ़रेब-ए-मोहब्बत कि उम्र भर
मैं ज़िंदगी को याद करूँ ज़िंदगी मुझे

रखना है तिश्ना-काम तो साक़ी बस इक नज़र
सैराब कर न दे मिरी तिश्ना-लबी मुझे

पाया है सब ने दिल मगर इस दिल के बावजूद
इक शय मिली है दिल में खटकती हुई मुझे

राज़ी हों या ख़फ़ा हों वो जो कुछ भी हों 'शकील'
हर हाल में क़ुबूल है उन की ख़ुशी मुझे

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं

सुदर्शन फ़ाख़िर
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं

ज़िंदगी को भी सिला कहते हैं कहने वाले
जीने वाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं

फ़ासले उम्र के कुछ और बढ़ा देती है
जाने क्यूं लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं

चंद मासूम से पत्तों का लहू है 'फ़ाकिर'
जिस को महबूब की हाथों की हिना कहते हैं

किस के लिए ज़िंदा हूं बता भी नहीं सकता

वसीम बरेलवी
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आंसू की तरह आंख तक आ भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तिरी क्या
हर शख़्स मिरा साथ निभा भी नहीं सकता

प्यासे रहे जाते हैं ज़माने के सवालात
किस के लिए ज़िंदा हूं बता भी नहीं सकता

घर ढूंढ़ रहे हैं मिरे रातों के पुजारी
मैं हूं कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता

वैसे तो इक आंसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं

दुष्यंत कुमार
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं

बूँद टपकी थी मगर वो बूंदों बारिश और है
ऐसी बारिश की कभी उन को ख़बर होगी नहीं

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मा'लूम है
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं

आप के टुकड़ों के टुकड़े कर दिए जाएँगे पर
आप की ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं

सिर्फ़ शाइ'र देखता है क़हक़हों की असलियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं

तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे

बशीर बद्र

अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
वो आइना है तो फिर आइना दिखाए मुझे

अजब चराग़ हूं दिन रात जलता रहता हूं
मैं थक गया हूं हवा से कहो बुझाए मुझे

मैं जिस की आंख का आंसू था उस ने क़द्र न की
बिखर गया हूं तो अब रेत से उठाए मुझे

बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूं
कोई तो आए ज़रा देर को रुलाये मुझे

मैं चाहता हूं कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे

Diary Apr'95


दुनिया की नज़र में मैं तेरा कुछ भी न सही,
जरा दिल में झाँक कर तो देख, कहीं मैं सबसे ऊपर तो नहीं।

खत में लिखूँ तो क्या लिखूँ, बस में दिल हमदम नहीं,
खाक ऐसी जिंदगी की तुम कहीं और हम कहीं।

शिकवा हमें मंजूर नहीं, न कोई बहाना होगा,
हमारी खुशिओं की खातिर आपको आना होगा।

हो न जाए खबर कहीं जमाने की हवाओं को,
छुपा के रखना सदा दिल में हमारी वफाओं को।

वो जब हमारे करीब आ बैठे,
सारी दुनिया हम भुला बैठे,
हो गयी दिल की सारी हसरतें पूरी,
खुद को हम उनपे लूटा बैठे।

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता,
चुप भी तो रहा नहीं जाता,
अब तो मिल जा ऐ सितमगर,
दर्दे जुदाई अब सहा नहीं जाता।

क्या कहूँ क्या है अपना हाल,
उनका है ख्याल खुद हूँ बेखयाल।

हज़ार हसीन को देखा मगर दिल को तुम्ही भाए,
दिल हो गया अब तेरा आशिक इसे अब कौन समझाये।




Diary Mar'95


तुम्हें इस कदर चाहा था हमने प्यार में,
दिल देकर भी तुम हुमसे दूर चले गए,
हम तो मर ही लेते इस बेरहम दुनिया में,
क्यों तुम हमें जीने का ऐहसास कराकर चले गए।

मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल महफूज होते हैं,
ये वो नगमा है जो हर साज पे गाया नहीं जाता।

जहां तक जाती है नज़र तुझको देख रहा हूँ,
दिल के साथ जलते अपना घर देख रहा हूँ।
इस दौर में न होगा मुझसा कोई जुनूनी,
खुद खोद के अपनी कब्र देख रहा हूँ।

ये किस मुकाम पे ले आई बयार मुझे,
अब तक न था हसीनों से सरोकार मुझे,
आज किसी ने पर्दे से देख कर एक मुझे,
बना दिया है मोहब्बत का साहकार मुझे।

बला के खूबसूरत वो लड़की एक खूबसूरत बला है,
जिसे चाहकर मेरे मन का उपवन खिला है।
जब पास होते हैं वो तो ये सोचता हूँ मैं,
कर डालूँ इजहार ए प्यार, पर इरादा हर बार टला है।
<खला, मिला, जला, कला, गला>


कहते हैं इश्क़ में नींद उड़ जाती है,
कमबख्त, कोई हमसे इश्क़ करे, नींद बहुत आती है।

खाँस खाँस कर चुप हो जाता नल है,
एक भी बूंद न यहाँ जल है,
यही हाल आज और कल है,
इससे भला तो अपना चापाकल है।

किसी के पास कला है,
किसी के पास गला है,
मंच से दोनों उतार जाए,
इसी में सबका भला है।

कहता है अक्स, हुस्न को रुसवा न कीजिये,
हर वक़्त आप आईना देखा न किजिये।

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं तोड़ा करते,
वक़्त की साख से लम्हे नहीं तोड़ा करते।

कुछ तबीयत ही मिली ऐसी,
चैन से जीने की सूरत न हुई।
जिसे चाहा उसे पा न सके,
जो मिला उससे मोहब्बत न हुई।

बैठे थे सोच में तो कुछ याद न आया,
जब फोन उठाया तो तेरा नाम याद आया।

जिस वक़्त खुदा ने तुझे बनाया होगा,
उस वक़्त उस पर सुरूर छाया होगा,
पहले सोचा होगा तुझे जन्नत में रखूँ,
फिर उसे मेरा ख्याल आया होगा।

चाहे तुम मुझे भुला दो, हम तुम्हें भूल न पाएंगे,
जिस दिन तुम्हें भूल जाएंगे मर ही जाएंगे,
क्योंकि तुम्हें दिल की धड़कन बना लिया है।

आँखों की भाषा वो समझ नहीं पाते,
उनसे है प्यार ये हम कह नहीं पाते।
अपनी बेबसी किससे कहें हम,
कोई है जिसके बिना हम रह नहीं पाते।

कुछ दूरी पर हम थे, कुछ दूरी पर वो,
कुछ कदम हम चले कुछ कदम वो चले,
कुछ फूल हम पर पड़े, कुछ फूल उन पर पड़े,
फर्क सिर्फ इतना सा था,
वो घर से विदा हो रहे थे, और हम जिंदगी से।

थोड़ी सी इकरार की बातें,
थोड़ी सी इंकार की बातें,
कुछ लम्हों का साथ है,
आओ कर ले प्यार की बातें।








Diary Feb'95


Diary Feb’ 1995
आज उनका है इंतज़ार बहुत,
दिल है सीने में बेकरार बहुत,
जान कर अब हम न धोखा खाएँगे,
कर चुके तुमपे एतबार बहुत।

कितनी जालिम है तेरी ये गजाली आँखें,
मस्त कर देती है ये तेरी शराबी आँखें,
तेरे इंकार का मैं कैसे यकीन कर लूँ,
बाखुद प्यार में झुक जाती है तेरी आँखें,
डूब जाने दो मुझको झील सी गहराई में,
कितनी गहरी है तेरी रात सी काली आँखें।

वह कहकर आखिर मुकर गया,
दिल टुकड़े टुकड़े बिखड़ गया,
पर जब भी उसके हुस्न की बात चली,
तो चाँद का चेहरा उतर गया।

रहेगा चमन तो फूल खिलेंगे जरूर,
जिंदा रहे तो मिलेंगे जरूर।

काग चेष्टा, बको ध्यानम, स्वान निद्रा तथैव च,
अल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम।
हमारा छोटा सा जी गाँव,
जिसमें रहते काले काँव,
करे वो तब-तब हम पर बीट,
जब हम सोवें पीपल छाँव।

वो जो गमजदा होते है क्या खाक जीते है,
बस आँसूओ को पीते है, जो गमजदा होते हैं।

तुझे खो दिया हमने पाने के बाद,
तेरी याद आई तेरे जाने के बाद।

______ है उस कली का नाम,
जो मुझे देखकर शर्माती है,
जब भी आता हूँ उसके सामने,
मारे लाज शर्म के छुप जाती है।

फूल खिलते है बहारों का शमा होता है,
ऐसे ही मौसम में तो प्यार जवान होता है,
दिल की बात होठों से नहीं कहते,
ये फसाना तो नज़रों से बयान होता है।

अब तो हर गुल में चहकने लगे है हम,
आपने चाहा तो महकने लगे हैं हम,
जाने तेरी मद भरी आँखों ने क्या जादू किया,
की भरी महफिल में बहकने लगे हैं हम।

देव सदा देव तथा दनुज दनुज है,
जा सकता दोनों ओर, वो मनुज है।

आएँगी बहारें तो तेरी ही फसाने सुनाएगी हमें,
आएगी तनहाई तो तेरे ही यादें रुलाएगी हमें।


जीवन के हर पल करता हूँ यही कामना,
तुम्हारा हर दिन हो केवल खुशियों से सामना।

जन्म दिन मुबारक हो दिल की गहराइयों से,
दूर रहो तुम गम की परछाइयों से।

होके मायूष न यूँ शाम से ढलते रहिए,
जिंदगी भोर है, सूरज से ढलते रहिए।

हालात न बदले तो इस बात पे रोना।
हालात बदले तो बदले हालत पे रोना।

खत लिखते हैं उन्हे जो दूर रहते है,
आपको क्या लिखे आप तो दिल में रहते है।

आईना देखकर ये बोले सवरने वाले,
आज तो बेमौत मरेंगे हमपे मरने वाले।

कहीं ऐसा न हो कि कदम थर्रा जाएँ,
और तेरी संगमरमरी बाहों का सहारा न मिले,
कहीं ऐसा न हो कि अश्क बहते रहे रातों में,
और तेरी रेशमी आँचल का किनारा न मिले।

कुछ अलग ही रंग में रंगा आज ये दीवाना है,
आज मेरे फन का मकसद जंजीरें पिघलाना है,
आज मैं शबनम के बदले अंगारें बरसाऊंगा,
तुम परचम लहराना साथी मैं पर्वत पे गाऊँगा।

उन राहों को ढूँढता हूँ, जिन राहों से आया हूँ,
कितनी उम्मीदें लेकर आया था, कितनी नाउम्मीदी लाया हूँ।

दुनिया में इतने झंडे क्यों है,
और उन झंडे में डंडे क्यों है।




Saturday, March 21, 2020

दुनिया’ पर 20 बेहतरीन शेर

लम्हे उदास उदास फ़ज़ाएं घुटी घुटी
दुनिया अगर यही है तो दुनिया से बच के चल
- शकील बदायूंनी


फैलती जा रही है ये दुनिया
जश्न-ए-आवारगी मनाने में
- अरशद लतीफ़

मरने की दुआएं क्यूं मांगूं जीने की तमन्ना कौन करे
ये दुनिया हो या वो दुनिया अब ख़्वाहिश-ए-दुनिया कौन करे
- मुईन अहसन जज़्बी


दुनिया तो है दुनिया कि वो दुश्मन है सदा की
सौ बार तिरे इश्क़ में हम ख़ुद से लड़े हैं
- जलील ’आली’

ये भी तो सोचिए कभी तन्हाई में ज़रा
दुनिया से हम ने क्या लिया दुनिया को क्या दिया
- हफ़ीज़ मेरठी


या मैं सोचूं कुछ भी न उस के बारे में
या ऐसा हो दुनिया और बदल जाए
- शहरयार

मैं 'शाद' तन्हा इक तरफ़ और दुनिया की दुनिया इक तरफ़
सारा समुंदर इक तरफ़ आँसू का क़तरा इक तरफ़
- शाद अज़ीमाबादी


दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं
बाज़ार से गुज़रा हूं ख़रीदार नहीं हूं
- अकबर इलाहाबादी

'जौन' दुनिया की चाकरी कर के
तू ने दिल की वो नौकरी क्या की
- जौन एलिया


भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
- बशीर बद्र

दुनिया है संभल के दिल लगाना
यां लोग अजब अजब मिलेंगे
- मीर हसन


दाएम आबाद रहेगी दुनिया
हम न होंगे कोई हम सा होगा
- नासिर काज़मी

नया लिबास पहन कर भी
दुनिया वही पुरानी है
- नज़ीर क़ैसर


दुनिया की क्या चाह करें
दुनिया आनी-जानी है
- तनवीर गौहर

बस हम दोनों ज़िंदा हैं
बाक़ी दुनिया फ़ानी है
- नज़ीर क़ैसर


ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
अपनी दुनिया देख ज़रा
- नासिर काज़मी

कविता क्या है

वह बहुत पहले की बात है
जब कहीं किसी निर्जन में
आदिम पशुता चीख़ती थी और
सारा नगर चौंक पड़ता था
मगर अब –
अब उसे मालूम है कि कविता
घेराव में
किसी बौखलाए हुए आदमी का
संक्षिप्त एकालाप है

~धूमिल

सन्नाटा टूटता है 
गूंगे के मुंह से उत्तर फूटता है 

'कविता क्या है?
कोई पहनावा है?
कुर्ता-पाजामा है ?'
'ना, भाई, ना,
कविता-शब्दों की अदालत में 
मुजरिम के कटघरे में खड़े बेकसूर आदमी का 
हलफनामा है।'

'क्या व्यक्तित्व बनाने की-
चरित्र चमकाने की-
खाने-कमाने की-
चीज है?'
ना, भाई, ना,
कविता 
भाषा में 
आदमी होने की तमीज है  

~धूमिल
कविता वक्तव्य नहीं गवाह है
कभी हमारे सामने
कभी हमसे पहले
कभी हमारे बाद

कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता
भाषा में उसका बयान
जिसका पूरा मतलब है सचाई
जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान

उसे कोई हड़बड़ी नहीं
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके
जुलूसों की तरह निकले
नारों की तरह लगे
और चुनावों की तरह जीते

वह आदमी की भाषा में
कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस

~कुंवर नारायण 
भूख, ख़ूँरेज़ी, ग़रीबी हो मगर
आदमी के सृजन की ताक़त
इन सबों की शक्ति के ऊपर
और कविता सृजन की आवाज़ है.
फिर उभरकर कहेगी कविता
"क्या हुआ दुनिया अगर मरघट बनी,
अभी मेरी आख़िरी आवाज़ बाक़ी है,
हो चुकी हैवानियत की इन्तेहा,
आदमीयत का अभी आगाज़ बाकी है !
लो तुम्हें मैं फिर नया विश्वास देती हूँ,
नया इतिहास देती हूँ !

~धर्मवीर भारती
आज फिर शुरू हुआ जीवन

आज मैंने एक छोटी-सी सरल-सी कविता पढ़ी
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा

जी भर आज मैंने शीतल जल से स्नान किया

आज एक छोटी-सी बच्ची आई,किलक मेरे कन्धे चढ़ी
आज मैंने आदि से अन्त तक पूरा गान किया

आज फिर जीवन शुरू हुआ ।

~रघुवीर सहाय
शब्द जो राजाओं की घाटी में नाचते हैं
जो माशूक की नाभि का क्षेत्रफल मापते हैं
जो मेजों पर टेनिस-बॉल की तरह लुढ़कते हैं
जो मंचों की खारी धरती में उगते हैं–
कविता नहीं होते।

~पाश
कविता के कान हमेशा चीख़ से
सटे रहते हैं !
नहीं; एक शब्द बनने से पहले
मैं एक सूरत बनना चाहता हूँ
मैं थोड़ी दूर और-और आगे
जाना चाहता हूँ

जहाँ हवा काली है । जीने का
ज़ोख़म है । सपनों का
वयस्क लोकतन्त्र है । आदमी
होने का स्वाद है ।

~धूमिल 

तुम्हें भी शहर के चौराहे पर सजा देंगे

तुम्हें भी शहर के चौराहे पर सजा देंगे
तुम्हारे नाम का पत्थर कहीं लगा देंगे

कुछ और पास नहीं तो किसी को क्या देंगे
किसी ने आग लगा दी तो वो हवा देंगे

ये और बात कि वो उसकी क्या सज़ा देंगे
ज़माने वालों को हम आईना दिखा देंगे

बिछड़ते वक़्त किसी से ये जी में सोचा था
भुलाना चाहा तो सौ तरह से भुला देंगे

किताब-ए-ज़ीस्त के औराक़ जल नहीं सकते
ये माना मेज़ से तस्वीर तो हटा देंगे

कहाँ से आये हो लेकर ये ख़ाक-ख़ाक बदन
किसी ने पूछ लिया तो जवाब क्या देंगे
उसी के साए में पलती है न ये दर्द की बेल
उजाड़ उम्र की दीवार ही गिरा देंगे

जुदाईयों के हैं जंगल में ज़ात के राही
ये वहम दिल में कि हम फ़ासले मिटा देंगे! 

एक चेहरा जो मेरे ख्वाब सजा देता है

एक चेहरा जो मेरे ख्वाब सजा देता है,
मुझ को मेरे ही ख्वाबों में सदा देता है! 

दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

ज़िंदगी जिस दयार में गुज़री
इक तेरे इख़्तियार में गुज़री
उम्र जो इश्क़ में गुज़रनी थी
वो तेरे इंतज़ार में गुज़री!


‏उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन 
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में 
~ सीमाब अकबराबादी

वजह तक पूछने का.... मौका ही ना मिला! 
बस लम्हे गुजरते गए.... हम अजनबी होते गए!


रोज़ कहता हूँ कि अब उन को न देखूँगा कभी 
रोज़ उस कूचे में इक काम निकल आता है

#सीमाब_अकबराबादी

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे 
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे 

है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू 
मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे 

देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा 
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे 

★★★
सीमाब अकबराबादी

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में 
इक आईना था टूट गया देख-भाल में 

आज़ुर्दा इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से 
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में 

दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है 
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में 

★★★
सीमाब अकबराबादी



इक सफ़र है जो बहता रहता है

कोई आहट नहीं बदन में कहीं 
कोई साया नहीं है आँखों में 

पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं 
इक सफ़र है जो बहता रहता है

~ गुलज़ार

वो कहें कैसे हो आप? और मैं रोने लग जाऊं।

ये भी मुमकिन है कि आँख भिगोने लग जाऊं,
वो कहें कैसे हो आप? और मैं रोने लग जाऊं।

-जौन एलिया 

सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना

सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना 
रवानी ज़िंदगानी है तो धारो तुम न सो जाना 

मुझे तुम को सुनानी है मुकम्मल दास्ताँ अपनी 
अधूरी दास्ताँ सुन कर सितारो तुम न सो जाना 

तुम्हारे दायरे में ज़िंदगी महफ़ूज़ रहती है 
निज़ाम-ए-बज़्म-ए-हस्ती के हिसारो तुम न सो जाना

तुम्हीं से जागता है दिल में एहसास-ए-रवा-दारी 
क़याम-ए-रब्त-ए-बाहम के सहारो तुम न सो जाना 

अगर नींद आ गई तुम को तो चश्मे सूख जाएँगे 
कभी ग़फ़लत में पड़ कर कोहसारो तुम न सो जाना 
तुम्हीं से बहर-ए-हस्ती में रवाँ है कश्ती-ए-हस्ती 
अगर साहिल भी सो जाएँ तो धारो तुम न सो जाना 

सदा-ए-दर्द की ख़ातिर तुम्हें 'कौसर' ने छेड़ा है 
शिकस्ता-साज़ के बेदार तारो तुम न सो जाना

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए: राहत इंदौरी

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए 
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए 

अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में 
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए 

दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं 
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए

मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना 
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए 

मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब 
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए 

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग 
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए 
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो 
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए 

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे 
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए 

सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके 
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए! 

Friday, March 20, 2020

मिर्जा गालिब शायरी

-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब,
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो, वो रूलाता ज़रूर है.!

थी खबर गर्म, के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े,
देखने हम भी गए थे, पर तमाशा न हुआ.!

Unke Dekhne Se Jo,
Aa Jaati Hai Muhh Par Ronak,
Vo Samajhte Hain Ki,
Bimar Ka Haal Accha Hai.!

तेरी दुआओं में असर हो तो, मस्जिद को हिला के दिखा,
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख.!

बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.!


Hazaron Khwaishein Aisi Ki,
Har Khwashish Pe Dam Nikle,
Bahut Nikle Mere Arman Lekin,
Phir Bhi Kam Nikle.!



Ishrat-e-qatra Hai,
Dariya Mein Fanaa Ho Jaana
Dard Ka Had Se Guzarna Hai,
Dava Ho Jaana..!



Hum Ko Maalum Hai,
Jannat Ki Haqiqat Lekin,
Dil Ke Khush Rakhne Ko,
Ghalib Ye Khayal Achha Hai.!




Mohabbat Mein Nahin Hai Fark,
Jeene Aur Marne Ka,
Usi Ko Dekh Kar Jeete Hain,
Jis Kafir Pe Dam Nikle.!

Shayari Of Ghalib On Ishq



तोड़ा कुछ इस अदा से, ताल्लुक उस ने ग़ालिब,
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे..!


मैं नादान था जो वफ़ा को,
तलाश करता रहा ‘ग़ालिब’,
यह न सोचा के एक दिन,
अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी..!

लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे
बांधनी नहीं आती “ग़ालिब”
हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है..!





सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास,
जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले,
अदल के तुम न हमे आस दिलाओ,
क़त्ल हो जाते हैं ज़ंज़ीर हिलाने वाले

Thursday, March 19, 2020

इश्क शायरी

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है 
~ जिगर मुरादाबादी

हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है 
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है

~ जिगर मुरादाबादी

कोई समझे तो एक बात कहूँ 
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं 

~फ़िराक़ गोरखपुरी

अदायें सीख लीं तुमनें, नज़र से क़त्ल करने की ..
 मगर तालीम न सीखी, किसी से इश्क़ करने की.

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' 
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है 
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है 
✍️ जिगर मुरादाबादी

साहिब ए अकल हो तो एक मशविरा तो दो....
एहतियात से इश्क करुं या इश्क से एहतियात! 

नज़र मिला के मेरे पास आ के लूट लिया
नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया

ज़िगर मुरादाबादी

सभी अंदाज़-ए-हुस्न प्यारे हैं 
हम मगर सादगी के मारे हैं 

उस की रातों का इंतिक़ाम न पूछ 
जिस ने हँस हँस के दिन गुज़ारे हैं 

ऐ सहारों की ज़िंदगी वालो 
कितने इंसान बे-सहारे हैं

आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है 
जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं

★★★
जिगर मुरादाबादी

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है 
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है 

★★★
जिगर मुरादाबादी

तुम अच्छे तेराक़ हो तैर कर निकल जाओगे 
मैं आशिक हूँ सिर्फ़ तुम्हारा,मुझे तुझ में ही डूब जाना है 

इश्क कर बैठे मगर हमने ये सोचा ही नहीं
ख़ाक हो जाएंगे हम इश्क़ के अंजाम के बाद।


‏‎करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम 
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता 
~ ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं! 




अंधेरा, अंधकार, स्याह, अंधियारा, तीरगी शायरी

तीरगी की अपनी ज़िद है जुगनुओं की अपनी ज़िद 
ठोकरों की अपनी ज़िद है हौसलों की अपनी ज़िद 

कौन सा क़िस्सा सुनाऊँ आप को मुश्किल ये है 
आँसुओं की अपनी ज़िद है क़हक़हों की अपनी ज़िद 
प्रबुद्ध सौरभ

तीरगी - अँधेरा

गले लग जाओगे कसकर मिलोगे जब कभी हमसे,
हमें मालूम है ये बेरुखी दो चार दिन की है।

न करिये बंद उम्मीदों की खिड़की, रौशनी होगी
हमें मालूम है ये तीरगी दो चार दिन की है।

~ डॉ. विष्णु सक्सेना

ख़ुशनुमा सुबहा थी जो अब ग़म में डूबी शाम है
रौशनी की इब्तदा का तीरगी अंजाम है

ज़िंदगी की दौड़ ही है मौत की आगोश तक
हर खिलाड़ी के लिये बस एक ही इनाम है

~धर्मेन्द्र श्रीवास्तव

दिलों की तीरगी छोड़ हंस के बोला करो 
आपका ही दिल है दिए जलाया करो 

मुस्कुराहट है हुस्न का जेवर 
रूप बढता है मुस्कुराया करो 

हुकम करना भी सखावत है 
कोई खिदमत हो तो बताया करो 

इस दुनियाँ से दिलकशी न हटे 
सो नित नए पैरहन में आया करो


न खिज़ा में है कोई तीरगी, न बहार में है कोई रौशनी=ये नज़र नज़र के चराग़ हैं, कभी बुझ गए कभी जल गए 
तीरगी - अँधेरा (Darkness)

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ 
कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ 

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ 
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ 
— वसीम बरेलवी

मैं नज़र से पी रहा हूं ये समां बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए


क्यूँ ना हो बात "तीरगी" की महफ़िल में
शमाँ बुझने के बाद यहाँ और क्या रह जाएगा
 





शेर गजल शायरी

हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या 
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए 
- जाँ निसार अख़्तर

हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में 
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता 
- बशीर बद्र

छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में 
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता 
- प्रेम भण्डारी

डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए 
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया 
- ऐतबार साजिद

अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए 
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी 
- निदा फ़ाज़ली

मुझ को शायर न कहो 'मीर' कि साहब मैं ने 
दर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया 
- मीर तक़ी मीर
डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए 
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया 
- ऐतबार साजिद

ज़िंदगी भर की कमाई यही मिसरे दो-चार 
इस कमाई पे तो इज़्ज़त नहीं मिलने वाली 
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
इश्क़ जिस से न हो सका उस ने
शायरी में अजब सियासत की
- सलीम कौसर

ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए 
मगर सितम है कि सब को सुनाना पड़ता है 
- अज़हर इनायती

'असग़र' ग़ज़ल में चाहिए वो मौज-ए-ज़िंदगी 
जो हुस्न है बुतों में जो मस्ती शराब में 
- असग़र गोंडवी
कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर 
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं 
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

जागीर अपनी शायरी पहले से थी मगर
इक उम्र जब रियाज़ किया साहिरी मिली
- साहिर होशियारपुरी

तुम्हारा 'नुशूर' और तुम्हारा तख़य्युल
मोहब्बत तुम्हारी तो शायर तुम्हारा
- नुशूर वाहिदी
कभी शराब कभी शायरी कभी महफ़िल
फिर इस के बाद धड़कता हुआ अकेला दिल
- जावेद नासिर

शायरी करते रहो लेकिन रहे इतना ख़याल
दुश्मनों से दोस्ती का हौसला बाक़ी रहे
- सरवर उस्मानी
शायर थे बंद एक सिनेमा के हाल में
पंछी फँसे हुए थे शिकारी के जाल में
- दिलावर फ़िगार

किसी खिड़की का शीशा भी नहीं टूटता
शायर अपना काम जारी रखते हैं मगर
- ज़ीशान साहिल

शेर गजल शायरी

हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या 
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए 
- जाँ निसार अख़्तर

हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में 
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता 
- बशीर बद्र

छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में 
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता 
- प्रेम भण्डारी

डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए 
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया 
- ऐतबार साजिद

अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए 
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी 
- निदा फ़ाज़ली

मुझ को शायर न कहो 'मीर' कि साहब मैं ने 
दर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया 
- मीर तक़ी मीर
डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए 
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया 
- ऐतबार साजिद

ज़िंदगी भर की कमाई यही मिसरे दो-चार 
इस कमाई पे तो इज़्ज़त नहीं मिलने वाली 
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
इश्क़ जिस से न हो सका उस ने
शायरी में अजब सियासत की
- सलीम कौसर

ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए 
मगर सितम है कि सब को सुनाना पड़ता है 
- अज़हर इनायती

'असग़र' ग़ज़ल में चाहिए वो मौज-ए-ज़िंदगी 
जो हुस्न है बुतों में जो मस्ती शराब में 
- असग़र गोंडवी
कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर 
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं 
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

जागीर अपनी शायरी पहले से थी मगर
इक उम्र जब रियाज़ किया साहिरी मिली
- साहिर होशियारपुरी

तुम्हारा 'नुशूर' और तुम्हारा तख़य्युल
मोहब्बत तुम्हारी तो शायर तुम्हारा
- नुशूर वाहिदी
कभी शराब कभी शायरी कभी महफ़िल
फिर इस के बाद धड़कता हुआ अकेला दिल
- जावेद नासिर

शायरी करते रहो लेकिन रहे इतना ख़याल
दुश्मनों से दोस्ती का हौसला बाक़ी रहे
- सरवर उस्मानी
शायर थे बंद एक सिनेमा के हाल में
पंछी फँसे हुए थे शिकारी के जाल में
- दिलावर फ़िगार

किसी खिड़की का शीशा भी नहीं टूटता
शायर अपना काम जारी रखते हैं मगर
- ज़ीशान साहिल

Wednesday, March 18, 2020

कभी तस्वीर की सूरत भी निकल आएगी

हम हैं सूखे तालाब पे बैठे हुए हंस
जो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं

इसलिए तो हवा अपने घर नहीं जाती
कि उसके बाद ये गलियां उजड़ने लगती हैं

कभी तस्वीर की सूरत भी निकल आएगी
सादा काग़ज़ पे लकीरें तो लगा दी जाएं

कौन सी मंजिल पे आ कर रुक गए अपने क़दम
कारवां पीछे है गर्द-ए-कारवां है सामने
पस्ती में गिरा मैं तो ख़याल आया ये मुझ को
शाख़ों से फूल नहीं बुलंदी से झड़े हैं

न जाने तुम्हें कब फ़ुरसत मिलेगी आने की
तुम्हारे आने के दिन तो गुज़रते जाते हैं
ये दुकानें तो उन्हें रोकती रह जाती हैं
जाने क्यों लोग गुज़र जाते हैं बाज़ारों से 

तेरे लिए चराग़ धरे हैं मुंडेर पर
तू भी अगर हवा की मिसाल आ गया तो बस
मेरे आंसू मेरे अन्दर ही गिरे
रोने से जी औऱ बोझल हो गया

हमें पछाड़ के क्या हैसियत तुम्हारी थी
वो जंग तुम भी न जीते जो हमने हारी थी


शायर - अब्बास ताबिश
किताब - रक़्स जारी है