मेरी तसवीर ख़ीचने वाले
तेरे शीशे में मेरी तसवीर ना समायेगी
मेरी फ़ितरत ही कुछ ऐसी है
की छूते ही बिख़र जाएगी!
पर तेरी तसवीर खींचूँगा मैं
जो मेरे शीशे में समायेगी
तेरी हसरत ही कुछ ऐसी है की
छूते ही महक जायेगी!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment