Tuesday, September 29, 2020

मुश्किल वक़्त तो अब आया है

सब आसान हुआ जाता है 
मुश्किल वक़्त तो अब आया है 

जिस दिन से वो जुदा हुआ है 
मैं ने जिस्म नहीं पहना है 

कोई दराड़ नहीं है शब में 
फिर ये उजाला सा कैसा है 


बरसों का बछड़ा हुआ साया 
अब आहट ले कर लौटा है 

अपने आप से डरने वाला 
किस पे भरोसा कर सकता है 

एक महाज़ पे हारे हैं हम 
ये रिश्ता क्या कम रिश्ता है 


क़ुर्ब का लम्हा तो यारों को 
चुप करने में गुज़र जाता है 

सूरज से शर्तें रखता हूँ 
घर में चराग़ नहीं जलता है 

दुख की बात तो ये है 'दोस्त' 
उस का वहम भी सच निकला है 

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