Saturday, September 12, 2020

नाजुकी उन लबों की क्या कहिए

क्यों हिज्र के शिकवे करता है, 
क्यों दर्द के रोने रोता है. 
अब इश्क किया तो सब्र भी कर, 
इसमें तो यही कुछ होता है. 
Hafiz jalandhari 

दर्द को दिल में जगह दो अकबर 
इल्म से शायरी नहीं होती 
-अकबर इलाहाबादी 

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं 
जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं 
-दाग़ देहलवी

तुम मेरे पास होते हो गोया 
जब कोई दूसरा नहीं होता 
-मोमिन 

नाजुकी उन लबों की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है 
मीर उन नीमबाज आंखों में 
सारी मस्ती शराब की सी है 
-मीर

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले 
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले 
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में 
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में 
-क़ैसर-उल जाफ़री

'वसीम' सदियों की आँखों से देखिए मुझ को
वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी  दास्ताँ नहीं होता
-वसीम बरेलवी 

न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से 
मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है 
- आदिल फ़ारूक़ी

ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ 
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया 
- साहिर लुधियानवी

गिले शिकवे कहाँ तक होंगे आधी रात तो गुज़री 
परेशाँ तुम भी होते हो परेशाँ हम भी होते हैं 
-दाग़ देहलवी

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