Tuesday, September 22, 2020

आँगन शायरी

जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी
उस मिट्टी का बोझ उठाते जिस्म की मिट्टी गलती थी
- हम्माद नियाज़ी

आँगन आँगन ख़ाना-ख़राबी हँसती है मे'मारों पर
पत्थर की छत ढाल रहे हैं शीशे की दीवारों पर
- एज़ाज़ अफ़ज़ल

हर आँगन में दिए जलाना हर आँगन में फूल खिलाना
इस बस्ती में सब कुछ करना हम से मोहब्बत मत करना
- क़मर जमील


इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए 
जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए 
- ज़फर ज़ैदी

शजर आँगन का जब सूरज से लर्ज़ां होने लगता था
कोई साया मिरे घर का निगहबाँ होने लगता था
- नश्तर ख़ानक़ाही

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
अपने बदन को देख ले छू कर मेरे बदन की मिट्टी है
- सरदार अंजुम


मन के आँगन में ख़यालों का गुज़र कैसा है
ये चहकता हुआ वीरान सा घर कैसा है
- मोनी गोपाल तपिश

ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें
ये कैसे लोग हैं जिन को घरों से डर नहीं लगता
- सलीम अहमद

तुम आओ तो घर के सारे दीप जला दूँ लेकिन आज
मेरा जलता दिल ही अकेला दीप है मेरे आँगन का
- अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

तिरे आँगन में है जो पेड़ फूलों से लदा होगा
तिरे घर का जो रस्ता है बड़ा ही ख़ुशनुमा होगा
- शोभा कुक्कल

सलोनी शाम के आँगन में जब दो वक़्त मिलते हैं
भटकते हम से उन सायों में कुछ आधे अधूरे हैं
- दीपक क़मर

तू किसी सुब्ह सी आँगन में उतर आती है
मैं किसी धूप सा दालान में आ जाता हूँ
- ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क

हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए
क्या हुआ ये लोग क्यूँ इक दूसरे से कट गए
- आनन्द सरूप अंजुम

सूना आँगन नींद में ऐसे चौंक उठा है
सोते में भी जैसे कोई सिसकी लेता है
- शारिक़ कैफ़ी

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