Tuesday, September 15, 2020

न जाने कब बड़े हो गए

छोड़कर बचपन की उन हसीन गलियों को
न जाने कब बड़े हो गए
बचपन की वह गलियां भी अब सड़के बन गई
जहां हम दोस्तों संग दौड़ा करते थे
बचपन की वह छोटी दुकानें भी अब इमारतें बन गई
जहां हम रोज एक सिक्का लेकर जाया करते थे

बारिशों की बूंदों में अब वह मजा कहां
जिनमें हम बचपन में भीगा करते थे
खेतों की मिट्टी में अब वो ख़ुशबू कहां
जिससे बचपन में हम घर बनाकर ख़ेला करते थे
बचपन के उन सुनहरे लम्हों को यादों में संजोए
न जाने कब बड़े हो गए

बड़े याद आते हैं बचपन के वो दिन
जब दोस्तों संग हम आवारा हुआ करते थे
न कोई पराया था, ना काई दुश्मन
अब अपने पराए में सिमट गए
न जाने कब बड़े हो गए

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