कुछ टूट कर देवता बन,मंदिरों में पूजे जाते हैं
उगते हुए सूर्य रश्मि को, सब प्रणाम करते हैं
जाते हुए इंसान को , इंसान ही भूल जाते हैं
उग्र हुए मन में प्रश्न, हर पत्थरों से पूछते हुए
निरुत्तर थे सभी पाषाण, बस द्रोपती को देखते रहे
अर्जुन का हाथ कांप गया, हर रिश्ते को देखते हुए
आज खंजर घोंप दिया, हर रिश्ते में शत्रु कहते हुए
आंखों का पानी मर गया , शर्म हया भी कहीं सो गया है
दौलत की चाह में कहीं, हर रिश्ता भी अभी खो गया है
शमन कर उस कुविचार को, विवेक से विचार करते हुए
मनन कर उग्र सुविचार को, प्रेम भाव से तराशते हुए
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