Tuesday, September 8, 2020

सदियों, सदियाँ शायरी

मैं था सदियों के सफ़र में 'अहमद'
और सदियों का सफ़र था मुझ में
- अहमद ख़याल


दो तरफ़ था हुजूम सदियों का
एक लम्हा सा दरमियां मैं था
- एजाज़ आज़मी


तिरी सदा का है सदियों से इंतिज़ार मुझे
मिरे लहू के समुंदर ज़रा पुकार मुझे
- ख़लील-उर-रहमान आज़मी


मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज
इस बार अंधेरा मिरे अंदर से उठा है
- आनिस मुईन

उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहां जो हादसे कल हो गए हैं
- नासिर काज़मी


सदियों से किनारे पे खड़ा सूख रहा है
इस शहर को दरिया में गिरा देना चाहिए
- मोहम्मद अल्वी

आवाज़ों का बोझ उठाए सदियों से
बंजारों की तरह गुज़ारा करता हूं
- अबरार आज़मी


सदियों से ज़माने का ये अंदाज़ रहा है
साया भी जुदा हो गया जब वक़्त पड़ा है
- जमील मुरस्सापुरी

इक रात है फैली हुई सदियों पर
हर लम्हा अंधेरों के असर में है
- जमुना प्रसाद राही


हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है
गर्दिश में जब सांसों का पैमाना होता है
- सरफ़राज़ ख़ालिद

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