पर कैसे अब तक यह मन, बात समझ न पाए ।
अपनों से दर्द मिले थे अकसर
शिकवा-शिकायत चलता ज्यादा- कमतर
अनजान भी कैसे चोट पहुंचाए, मन समझ न पाए ।
ना कोई रिश्ता, शत्रुता की ठौर कहां
बिन समझे ही, कैसा शोर यहां
सब एक हैं, काहे को पछताए, मन समझ न पाए ।
चन्द दिवस का साथ है अपना
यहां कहां हम को, इतिहास है रचना
बिन समझे ही क्यूं बैर हैं पाले, मन समझ न पाए ।
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