बढ़ती उम्र के साथ सुधरना चाहता हूं ।
सुकून मिले ऐसा कुछ करना चाहता हूं
हुई बहुत आपा धापी और भाग दौड़
अब थोड़ा चैन औ आराम चाहता हूं ।
सड़कों शहरों में भटकना बहुत हुआ
घर की देहरी में गुफ़्तगू चाहता हूं ।
किसी और या दूसरे की परवाह क्या
सिर्फ़ अपने साथ मुक़ाबला चाहता हूं ।
अपनी बेगम से मिले अरसा हो गया
बच्चों का क़िस्सा भी पुराना हो गया
मां के पास बैठे भी ज़माना हो गया
घर की रोटी का स्वाद भी बेगाना हो गया ।
धीमे चल ज़िन्दगी , सांस की मोहलत उतनी ही है,
फिर क्यों भागते रहने का रोग जान लेवा हो गया ?
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