ख्वाबों में जो केवल उभरकर आया था
अनछुए एहसासों से जिसने
हृदय को हौले से सहलाया था
शख्स जो दिमाग से दिल में समाया था
वो अपना नहीं कोई पराया था
जुबां ने जिससे कुछ कहा नहीं
शब्दों से कभी परिचय हुआ ही नहीं
मन की गहराइयों में उतरता गया
खामोशियों में भी मेरे जो शोर करता रहा
शख्स जो दिमाग से दिल में समाया था
वो अपना नहीं कोई पराया था
छवि जिसकी धूमिल थी
पर आंखों से अमिट थी
शांत चित्त में मेरे जिसने ज्वार लाया था
धड़कनों को उसी ने जगाया था
शख्स जो दिमाग से दिल में समाया था
वो अपना नहीं कोई पराया था
जीवन की राहों में संभलने लगी थी
थोड़ा - थोड़ा मैं पिघलने लगी थी
रिश्ता न कोई तन से था
अपरिचित भी वह मन से था
शख्स जो दिमाग से दिल में समाया था
वो अपना नहीं कोई पराया था..
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