दिले गुलिस्तान में बबूल रोपा गया है
मैं तो जुगनू हूं मुझे अंधेरों से प्यार है
मुझपर दावा ए आफताब ठोका गया है
लहू के रंग से जाहिर है हम सब एक हैं
जाने क्यों खंजर ए नफरत घोंपा गया है
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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